ऋण वसूली अधिकरणों (DRTs)

ऋण वसूली अधिकरणों (DRTs)

हाल ही में सरकार ने 100 करोड़ रुपये से अधिक के मामलों को सुलझाने के लिए 3 ऋण वसूली अधिकरणों (DRTs) में विशेष पीठें गठित की हैं।

सरकार ने चेन्नई, मुंबई और दिल्ली के DRTs में ये विशेष पीठें गठित की हैं।

बैंक लंबे समय से बड़ी धनराशि वाले मामलों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की मांग कर रहे थे। इसी परिप्रेक्ष्य में इन पीठों का गठन किया गया है।

सरकार के इस कदम का महत्व

  • बड़ी धनराशि वाले मामलों की संख्या केवल 1% होने का अनुमान है, लेकिन राशि के हिसाब से ये कुल दावों का 80% हैं।
  • वर्तमान में, भारत में निजी स्वामित्व वाली बहुत-सी कंपनियां साझेदारी या पारिवारिक संस्था के रूप में पंजीकृत हैं।
  • इन पर दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इसका कारण यह है कि NCLT में केवल कंपनियों से संबंधित मामलों की ही सुनवाई होती है ।
  • इसके अलावा, RBI के डेटा के अनुसार मार्च 2021 तक DRIs में 25 लाख करोड़ रूपये के ऋणों से जुड़े मुकदमे लंबित थे।

DRTs के बारे में

  • ऋणों की वसूली और शोधन अक्षमता (RDB अधिनियम), 1993 में मूल क्षेत्राधिकार वाले DRT तथा अपीलीय क्षेत्राधिकार वाले ऋण वसूली अपीलीय अधिकरणों (DRATs) की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
  • इन अधिकरणों का उद्देश्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋणों पर शीघ्र निर्णय देना तथा उनकी वसूली करवाना है।
  • ये वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन ( सरफेसी / SARFAESI) अधिनियम, 2002 के तहत दायर मामलों की भी सुनवाई करते हैं।
  • वर्तमान में, 39 DRTS और 5 DRATS देश भर में कार्य कर रहे हैं।

स्रोत – द हिन्दू

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