उपासना स्थल अधिनियम एक ही धर्म के भीतर लागू नहीं किया जा सकता

उपासना स्थल अधिनियम एक ही धर्म के भीतर लागू नहीं किया जा सकता

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उपासना स्थल अधिनियम एक ही धर्म के भीतर लागू नहीं किया जा सकता है ।

उच्चतम न्यायालय ने जैन समुदाय के एक उप-संप्रदाय द्वारा संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है।

इस याचिका में अपने धार्मिक स्थलों के एक अन्य उप-संप्रदाय द्वारा कथित तौर पर रूपांतरण के खिलाफ उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 को लागू करने की मांग की गई थी।

वर्ष 1991 का यह अधिनियम किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है। साथ ही, यह किसी भी उपासना स्थल के उस धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए प्रावधान करता है, जैसा यह 15 अगस्त, 1947 को था।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

धारा 3: यह किसी भी धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल के किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल में पूर्ण या आंशिक रूपांतरण पर रोक लगाता है। यहां तक कि यह धारा समान धार्मिक संप्रदाय के स्थल के किसी अन्य घटक के स्थल में रूपांतरण को भी रोकती है।

धारा 4(2): इस अधिनियम के प्रारंभ पर, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप के परिवर्तन के संबंध में किसी भी अदालत के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी। साथ ही, कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।

महत्व

  • इस कानून के माध्यम से, राज्य ने सभी धर्मों की समानता व पंथनिरपेक्षता को बनाये रखने के लिए एक संवैधानिक प्रतिबद्धता को लागू किया है। साथ ही, अपने संवैधानिक दायित्वों को व्यवहार में लाने का प्रयास किया है।
  • यह कानून भारत के पंथनिरपेक्ष मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में पुरानी स्थिति में वापस जाने के खिलाफ (non-retrogression) रक्षा करता है। इसका अर्थ है कि अधिकारों में पूर्व स्थिति में वापस लौटने का विचार नहीं होना चाहिए।

स्रोत द हिन्दू

Download Our App

More Current Affairs

Share with Your Friends

Join Our Whatsapp Group For Daily, Weekly, Monthly Current Affairs Compilations

Related Articles

Youth Destination Facilities

Enroll Now For UPSC Course