इसरो का पहला लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) विफल
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-02 और विद्यार्थियों द्वारा निर्मित उपग्रह आज़ादीसैट (Azaadi SAT) को लेकर लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की पहली उड़ान शुरू की थी।
हालाँकि यह मिशन उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने में विफल रहा और उपग्रह जो कि पहले से ही प्रक्षेपण यान से अलग हो चुके थे, उनके मध्य संपर्क टूट गया।
प्रक्षेपण के बाद उपग्रहों को वृत्ताकार की बजाय गलत अण्डाकार कक्षा में प्रवेश करा दिया गया था।
कक्षा : कक्षा एक वक्राकार पथ है, जिस पर तारे, ग्रह, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह आदि जैसे खगोलीय पिंड या अंतरिक्ष यान गुरुत्वाकर्षण के कारण किसी अन्य पिंड के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) के बारे में
- यह तीन चरणों वाला पूर्णतः ठोस ईंधन आधारित अंतरिक्ष यान है। यह 500 किलोग्राम द्रव्यमान वाले उपग्रहों को 500 कि.मी. ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में प्रक्षेपित करने की क्षमता रखता है।
- इसका उद्देश्य लघु उपग्रहों को LEO में प्रक्षेपित करने के लिए उभरते बाजार की मांग को पूरा करना है। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो/ISRO) का सबसे छोटा अंतरिक्ष यान है। इसका द्रव्यमान 110 टन है।
SSLV के लाभ
- इसका टर्नअराउंड टाइम (अगले प्रक्षेपण के लिए तैयार करने में लगने वाला समय) बहुत कम है। साधारण तौर पर किसी यान का टर्न अराउंड टाइम 70 दिनों का होता है, लेकिन SSLV का केवल 70 घंटे है। यह लागत प्रभावी अंतरिक्ष यान भी है। इसकी प्रक्षेपण लागत केवल 30 करोड़ रुपये के आसपास है।
- इसके लिए साधारण अवसंरचना और कम कार्यबल की आवश्यकता होती है।
- अंतरिक्ष यान को छह विशेषज्ञों की टीम द्वारा केवल सात दिनों के भीतर असेंबल किया जा सकता है। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV)के विपरीत, SSLV को लंबवत (vertically) तथा क्षैतिज (horizontally) दोनों तरह से असेंबल किया जा सकता है।
- यह कई उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकता है। इनमें नैनो, सूक्ष्म और लघु उपग्रह शामिल है।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान- D1/EOS –02 मिशन:
इसका उद्देश्य लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान के बाज़ार में एक बड़ी भागीदारी हासिल करना था, क्योंकि यह उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित कर सकता था।
इस मिशन के तहत दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की योजना थी-
- पहला EOS-2 पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन और कार्यान्वित किया गया है।
- यह माइक्रोसैट उपग्रह शृंखला उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के साथ इन्फ्रा-रेड बैंड में संचालित उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग प्रदान करती है।
- दूसरा, आज़ादीसैट छात्र उपग्रह, यह 8U क्यूबसैट है जिसका वज़न लगभग 8 किलोग्राम है।
- यह लगभग 50 ग्राम वज़न के 75 अलग-अलग पेलोड वहन करता है और फेमटो-एक्सपेरिमेंट करता है।
- इसने छोटे-छोटे प्रयोग किये जो अपनी कक्षा में आयनकारी विकिरण को माप सकते थे और ट्रांसपोंडर जो ऑपरेटरों को इसे पहुँच प्रदान करने में सक्षम बनाने हेतु हैम रेडियो फ्रीक्वेंसी में काम करता था।
- देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन पेलोड के निर्माण के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
- पेलोड को “स्पेस किड्ज़ इंडिया” के विद्यार्थियों की टीम द्वारा एकीकृत किया गया है।
अंतरिक्ष की अलग-अलग कक्षाएं–
- भूस्थिर कक्षा (GEO): GEO में उपग्रह पृथ्वी के घूर्णन के अनुरूप पश्चिम से पूर्व की ओर भूमध्य रेखा के ऊपर पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। इसलिए, GEO में उपग्रह एक निश्चित स्थिति में ‘स्थिर’ दिखाई देते हैं।
- पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO): यह कक्षा पृथ्वी की सतह के अपेक्षाकृत करीब है। यह आमतौर पर 1000 कि.मी. से कम की ऊंचाई पर स्थित है, लेकिन यह पृथ्वी से 160 किलोमीटर जितनी कम ऊंचाई पर भी हो सकती है।
- ध्रुवीय कक्षा : ध्रुवीय कक्षाओं में उपग्रह आमतौर पर पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर पश्चिम से पूर्व की बजाय उत्तर से दक्षिण दिशा में परिक्रमा करते हैं।
- सूर्य–तुल्यकालिक कक्षा (SSO) : यह एक विशेष प्रकार की ध्रुवीय कक्षा है। SSO में उपग्रह, ध्रुवीय क्षेत्रों में परिक्रमा करते हुए, सूर्य के साथ तुल्यकालिक होते हैं ।
स्रोत –द हिन्दू