उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु समिति गठित

उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु समिति गठित

हाल ही में, रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक संपन्न हुई है। बैठक के दौरान उन्होंने उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में अलग-अलग अवसंरचना परियोजनाओं के निर्माण की प्रगति की समीक्षा की। इस समीक्षा के बाद सचिवों की एक समिति गठित करने का निर्णय लिया गया ।

सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता क्यों है?

  • पड़ोसी देशों के साथ व्यापार संबंधों में सुधार होगा ।
  • तिब्बत में अपने विशाल बुनियादी ढांचे के कारण चीन को प्राप्त लाभ की स्थिति को प्रतिसंतुलित करने में मदद मिलेगी ।
  • सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य टुकड़ियों, बख्तरबंद वाहनों और तोपखानों की तीव्र गति से आवाजाही सुनिश्चित होगी ।
  • भीतरी इलाकों को एकीकृत करने और विकास के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों में सकारात्मक धारणा बनाने में मदद मिलेगी। ये उपाय लोगों को सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे रहने के लिए प्रेरित करेंगे।
  • सीमा पार से घुसपैठ और उग्रवाद के खतरों को कम करने में मदद मिलेगी।

सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी हुई चुनौतियां:

  • वित्त पोषण का अभाव है,भूमि अधिग्रहण में समस्याएं आती हैं, सीमावर्ती क्षेत्र बहुत सुदूर हैं,दुर्गम पहाड़ी इलाकों की वजह से निर्माण लागत बढ़ जाती है आदि ।

सरकार द्वारा सीमा अवसंरचना प्रबंधन के लिए किए गए उपाय

  • सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP)- इसका उद्देश्य दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का बेहतर जीवनयापन सुनिश्चित करना है।
  • जीवंत ग्राम कार्यक्रम – इसे मुख्य रूप से चीन की सीमा से सटी दूरस्थ बस्तियों में सामाजिक और वित्तीय अवसंरचना में सुधार के लिए उनके व्यापक विकास हेतु शुरू किया गया है।
  • सड़कों, पुलों व सुरंगों के निर्माण के माध्यम से कनेक्टिविटी में सुधार किया जा रहा है। सिक्किम में लाचेन-कालेप सड़क पर समडोंग ब्रिज का निर्माण इसका एक प्रमुख उदाहरण है ।

भारत में स्मार्ट फेंसिंग:

  • व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (Comprehensive Integrated Border Management System- CIBMS) के तहत भारत-पाकिस्तान सीमा (10 किलोमीटर) और भारत-बांग्लादेश सीमा (61 किलोमीटर) पर लगभग 71 किलोमीटर की दो पायलट परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।
  • CIBMS में सीमाओं को सुरक्षित करने के लिये थर्मल इमेजर्स, इन्फ्रा-रेड और लेज़र अलार्म, एयरोस्टैट्स, ग्राउंड सेंसर, रडार, सोनार सिस्टम, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर और रीयल-टाइम कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम जैसी उन्नत निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाना शामिल है।
  • असम के धुबरी ज़िले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर CIBMS के तहत BOLD-QIT (बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिकली डोमिनेटेड QRT इंटरसेप्शन तकनीक) का भी उपयोग किया जा रहा है।

स्रोत – पी.आई.बी.

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