उत्तरी समुद्री नौवहन मार्ग विकसित करने के लिए भारत – रूस वार्ता
हाल ही में रूस उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) विकसित करने के लिए भारत के साथ वार्ता कर रहा है।
मुख्य कारण:
उत्तरी समुद्री मार्ग के प्रारंभिक बिंदु मरमंस्क बंदरगाह पर भारतीय कार्गो यातायात में वृद्धि देखी गई है। इस बंदरगाह द्वारा प्रबंधन किए गए कार्गो में भारत का 35 प्रतिशत हिस्सा है।
उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) के बारे में:
- यह यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्र को जोड़ने वाला सबसे छोटा शिपिंग मार्ग है। 5,600 किमी तक फैला यह आर्कटिक महासागर के चार समुद्रों से होकर गुजरता है ।
- यह मार्ग बैरेंट्स और कारा समुद्र (कारा जलडमरूमध्य) के बीच की सीमा से शुरू होता है और बेरिंग जलडमरूमध्य (प्रोविडेनिया खाड़ी) पर समाप्त होता है।
- स्वेज या पनामा के माध्यम से मौजूदा शिपिंग लेन की तुलना में एनएसआर 50% तक की संभावित दूरी बचत प्रदान करता है।
उत्तरी समुद्री मार्ग का महत्त्व:
- जहाजों द्वारा आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले स्वेज नहर मार्ग की तुलना में NSR का उपयोग करने से लगभग 30-40 प्रतिशत ऊर्जा और समय की बचत होगी ।
- NSR की लंबाई स्वेज नहर से होकर जाने वाले पारंपरिक जलमार्ग की लंबाई से लगभग एक-तिहाई कम है। इस मार्ग पर समुद्री डकैती का खतरा न के बराबर है।
- इस मार्ग के संचालन से आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का अन्वेषण, दोहन और परिवहन आसान हो जाएगा।
चुनौतियां:
- रूस NSR पर अपनी संप्रभुता का दावा करता रहा है। इस मार्ग में नौ- परिवहन की स्वतंत्रता (Freedom of navigation) के सिद्धांत का उल्लंघन करने से भू-सामरिक संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं।
- आर्कटिक क्षेत्र में पड़ने वाले कोहरे के कारण नौपरिवहन परिचालन अवधि कम हो जाएगी।
- NSR पर जहाजों की आवाजाही बढ़ने से आर्कटिक के पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा । इसके अलावा, जहाज परिचालन लागत में भी वृद्धि की संभावना है ।
स्रोत – द हिन्दू