उच्चतम न्यायालय ने सेक्स वर्क को पेशे की मान्यता
उच्चतम न्यायालय ने सेक्स वर्कर्स के लिए अनुच्छेद-21 के अनुसार गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने हेतु निर्देश जारी किए हैं। ये निर्देश अनुच्छेद-142 के तहत जारी किए गए हैं।
अनुच्छेद-142 उच्चतम न्यायालय को किसी भी मामले में या उसके समक्ष लंबित मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है।
उच्चतम न्यायालय के दिशा–निर्देश:
- वयस्क और सहमति देने वाले सेक्स वर्कर्स के खिलाफ कोई पुलिस हस्तक्षेप या आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
- बच्चे को केवल इस आधार पर माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में लिप्त है।
- बचाव कार्यों की रिपोर्ट करते समय मीडिया को उनकी तस्वीरें प्रकाशित नहीं करनी चाहिए या उनकी पहचान उजागर नहीं करनी चाहिए।
- केंद्र और राज्यों को कानूनों में सुधार के लिए सेक्स वर्कर्स या उनके प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए।
- UIDAI सेक्स वर्कर्स को आधार कार्ड प्रदान करेगा, भले ही वे निवास प्रमाण प्रस्तुत करने में असमर्थ हों।
- यह राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) या राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किया जाता है।
सेक्स वर्कर्स द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएं:
- वे हिंसा, अपराधीकरण और हाशिए पर धकेल दिए जाने की स्थिति का सामना करती हैं;
- उन पर HIV से संक्रमित होने का उच्च खतरा बना रहता है आदि।
भारत में सेक्स वर्क की कानूनी स्थितिः
भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, स्वैच्छिक लैंगिक कृत्य या वेश्यावृत्ति को गैरकानूनी नहीं माना जाता है। हालांकि, अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के तहत वेश्यालय चलाना, इसके लिए दलाली करना या उसका मालिक होना गैरकानूनी है।
सेक्स वर्कर्स के लिए अन्य पहलें:
- सेक्स वर्कर्स के लिए पुनर्वास योजना,
- सेक्स वर्कर्स की तस्करी को रोकने, उनके बचाव, पुनर्वास, पुनःसमेकन और प्रत्यावर्तन के लिए ‘उज्ज्वला योजना,नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (NNSW) आदि।
स्रोत –द हिन्दू