उच्चतम न्यायालय के अनुसार दिव्यांगजनों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार

उच्चतम न्यायालय के अनुसार दिव्यांगजनों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार

हाल ही में ,उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि एक दिव्यांगजन पदोन्नति के लिए आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकता है, भले ही उसे सामान्य श्रेणी में भर्ती किया गया हो या दिव्यांगता नियोजन के उपरांत हुई हो।

निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण, और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 {Persons With Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation )Act, 1995} एक ऐसे व्यक्ति जिसने दिव्यांगता के आधार पर सेवा में प्रवेश किया हो, और एक ऐसे व्यक्ति जो सेवा में प्रवेश करने के उपरांत दिव्यांगता से ग्रसित हो गया हो के मध्य विभेद नहीं करता है।

वर्ष 1995 का अधिनियम पदोन्नति में आरक्षण के अधिकार को मान्यता प्रदान करता है।

पदोन्नति में आरक्षण की  पृष्ठभूमि

  • इंदिरा साहनी वाद (1992) में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि आरक्षण की नीति को पदोन्नति तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
  • हालांकि, वें संविधान संशोधन ने अनुच्छेद 16 में खंड 4A को शामिल किया और पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान को बहाल किया।
  • नागराज निर्णय (2006) में, न्यायालय ने तीन नियंत्रणकारी शतें निर्धारित की, जिन्हें राज्य को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने से पूर्व पूर्ण करना होगा:
  • वर्ग का पिछड़ापन।
  • वर्ग का पद/सेवा में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है।
  • आरक्षण प्रशासनिक दक्षता के हित में है।

जरनैल सिंह वाद (2018) में उच्चतम न्यायालय ने नागराज वाद के निर्णय से पिछड़ेपन के प्रदर्शन के प्रावधान को रद्द कर दिया था।

स्रोत – द हिन्दू

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