‘भारत में ई–कॉमर्स का संवर्धन और विनियमन’ शीर्षक से एक रिपोर्ट
हाल ही में वाणिज्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने ‘भारत में ई-कॉमर्स का संवर्धन और विनियमन’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है ।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- सरकार ने ई-कॉमर्स से संबंधित अति-महत्वपूर्ण डेटा का संग्रहण एवं मिलान और रखरखाव नहीं किया है।
- ई-फार्मेसी नियमों के प्रारूप को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
- GST पंजीकरण की अनिवार्यता ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से व्यापार करने वाले छोटे विक्रेताओं पर अनुचित बोझ डाला है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वर्तमान नीति ई-मार्केटप्लेस में प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों से निपटने तक ही सीमित है।
- एक ही रूपरेखा के भीतर व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डेटा के साथ समान व्यवहार अनुकूल नहीं है।
प्रमुख सिफारिशें:
- सभी ई-कॉमर्स कंपनियों का अनिवार्य पंजीकरण किया जाना चाहिए।
- गेटकीपर प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करने वाली संस्थाओं की पहचान करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, गेटकीपर के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए एक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
- ई-फार्मेसी क्षेत्र के लिए कठोर विनियम बनाए जाने चाहिए।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में विदेशी और भारतीय मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्स के बीच अंतर नहीं करना चाहिए।
- भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI ) के भीतर एक डिजिटल बाजार प्रभाग स्थापित किया जाना चाहिए। इससे डिजिटल बाजारों में नियमों को लागू करने में मौजूदा अंतराल को समाप्त करने में मदद मिलेगी।
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उत्पन्न डेटा के उपयोग और उसे साझा करने के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार किये जाने चाहिए।
- ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को अपने प्लेटफॉर्स पर घटिया नकली उत्पादों और सेवाओं के वितरण से संबंधित मुद्दों के समाधान में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- 5 करोड़ रुपये की टर्नओवर सीमा के अधीन वस्तु और सेवा कर (GST) संरचना योजना (कम्पोजीशन स्कीम) का ऑनलाइन विक्रेताओं तक विस्तार किया जाना चाहिए।
स्रोत -द हिन्दू