क्या आपको लगता है कि ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में हालिया संशोधन ई-अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या का पर्याप्त समाधान करते हैं?

Question – भारत में डिजिटल क्रांति के कारण ई-अपशिष्ट एक अपरिहार्य बुराई है। क्या आपको लगता है कि ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में हालिया संशोधन ई-अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या का पर्याप्त समाधान करते हैं? 3 March 2022

Answerहम आज भी कोरोना महामारी से मुक्त नहीं हुए लेकिन अभी से भविष्य में दूसरी महामारी की चिंता बढ़ती जा रही है। पर्यावरणविदों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर ई-कचरा और मैडिकल वेस्ट घरों, अस्पतालों से पर्यावरण में पहुंच गए तो इसके परिणाम भीषण होंगे और सदियों तक रहेंगे। राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग ने अपने एक अध्ययन के आधार पर चेताया था कि अगर समय रहते ई-कचरे के खतरनाक पक्ष पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में लाखों बच्चे कैंसर या ऐसे ही अन्य खतरनाक रोगों की जद में होंगे।

ई-कचरा इलेक्ट्रॉनिक-कचरे का एक संक्षिप्त नाम है, और इस शब्द का प्रयोग अप्रचलित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। इसमें उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएं और पुर्जे शामिल हैं।

दुनियाभर में जैसे-जैसे इलैक्ट्रॉनिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, उसके साथ ही इलैक्ट्रॉनिक कचरा भी बढ़ता जा रहा है। ई-वेस्ट रिपोर्ट 2020-21 बताती है कि वर्ष 2019 में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया गया था, जोकि पिछले 5 सालों में 21 फीसदी बढ़ गया है। अनुमान है कि 2030 तक इलैक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन 7.4 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा। ई-कचरे में वे वस्तुएं भी शामिल होती हैं जिनके जीवन का अंत हो चुका होता है, जैसे कि टी.वी., फ्रिज, कूलर, ए.सी., मॉनिटर, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर, मोबाइल, इलैक्ट्रॉनिक मशीनों के कलपुर्जे आदि।

उल्लेखनीय है कि, असुरक्षित ई-कचरे की रीसाइकिं लग के दौरान उत्सूजत रसायनों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे और मस्तिष्क विकार, श्वसन संबंधी विकार, त्वचा विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर तथा ह्रदय आदि को नुक्सान पहुंचता है।

भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है, जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए। इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 अधिनियमित किया गया था।

ई-कचरा प्रबंधन संशोधन नियम 2018 की कुछ मुख्‍य विशेषताएँ:

  • ई-कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्‍य 1 अक्‍तूबर, 2017 से प्रभावी माने जाएंगे। विभिन्‍न चरणों में ई-कचरे का संग्रहण लक्ष्‍य 2017-18 के दौरान उत्‍पन्‍न किये गए कचरे के वजन का 10 फीसदी होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से बढ़ता जाएगा। वर्ष 2023 के बाद यह लक्ष्‍य कुल उत्‍पन्‍न कचरे का 70 फीसदी हो जाएगा।
  • यदि किसी उत्‍पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्‍पादों के औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे नए ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण हेतु अलग लक्ष्‍य निर्धारित किये जाएंगे।
  • उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी।
  • हानिकारक पदार्थों से संबधित व्‍यवस्‍थाओं में आरओएच के तहत ऐसे उत्‍पादों की जाँच का खर्च सरकार वहन करेगी यदि उत्‍पाद आरओएच की व्‍यवस्‍थाओं के अनुरूप नहीं हुए तो उस हालत में जाँच का खर्च उत्‍पादक को वहन करना होगा।
  • उत्‍पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिये खुद को पंजीकृत कराने हेतु केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा।
  • 22 मार्च, 2018 को अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।

वह नियम एक उपयुक्त समय पर आए हैं, क्योंकि इससे उत्पादकों के लिए इस वित्तीय वर्ष के लक्ष्यों पर भ्रम को स्पष्ट करने में मदद मिली है और संशोधन में एक महत्वपूर्ण समावेश यह है कि पीआरओ को अब नए नियमों के तहत सीपीसीबी के साथ पंजीकरण करना आवश्यक है।

भारत में उत्पन्न होने वाले ई-कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों पर बढ़ती निर्भरता के साथ, देश में ई-कचरा उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि इसका प्रबंधन देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। भारतीयों को अभी तक ई-कचरा पैदा होने के कारणों और हानिकारक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों सहित इसके प्रभावों के बीच संबंधों का एहसास नहीं हुआ है।

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