इस वर्ष मानसून का कृषि पर प्रभाव

इस वर्ष मानसून का कृषि पर प्रभाव

उत्तर भारत में अत्यधिक सिंचाई के कारण मानसून के उत्तर-पश्चिम भाग की ओर स्थानांतरित होने से कृषि में जोखिम बढ़ रहे हैं।

हाल ही के एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि दक्षिण एशिया में मानसूनी वर्षा सिंचाई पद्धतियों के विकल्प के प्रति संवेदनशील है। ज्ञातव्य है कि दक्षिण एशिया विश्व के सबसेअधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक है।

मुख्य बिंदु

  • उत्तर भारत में अत्यधिक सिंचाई और परिणामस्वरूप वाष्पीकरण में वृद्धि (भूमि की सतह से वाष्पीकरण और पौधों से वाष्पोत्सर्जन का योग) सितंबर माह की मानसूनी वर्षा को उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग की ओर स्थानांतरित कर देती है और मध्य भारत में व्यापक स्तर पर चरम मौसमी दशाओं को बढ़ा देती है।
  • वर्षण की चरमावस्था से संबंधित ये जल-जलवायु संबंधी खतरे फसलों के समक्ष जोखिम को बढ़ा रहे हैं।
  • फसलों में बढ़ता जोखिम मुख्य रूप से किसानों की घटती संख्या और फसल उपजाने के मौसम के दौरान न्यूनतम तापमान में वृद्धि के कारण होता है।
  • यह अध्ययन कृषि पद्धतियों की योजना निर्माण में मदद कर सकता है और नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेटरेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) को प्रत्यक्षतः लाभान्वित कर सकता है।
  • NICRA, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की एक परियोजना है। इसका उद्देश्य रणनीतिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के माध्यम से भारतीय कृषि की जलवायु परिवर्तन और जलवायु सुभेद्यता के प्रति प्रत्यास्थता में वृद्धि करना है।
  • यह जलवायु तनाव और चरम घटनाओं, विशेष रूप से वर्षा की अंतर मौसमी परिवर्तनशीलता के प्रति सुभेद्यताओं के संदर्भ में देश में विभिन्न फसलों/क्षेत्रों का मूल्यांकन करता है।

स्रोत – द  हिन्दू

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