भारत द्वारा इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन सीमा शुल्क स्थगन को जारी रखने का विरोध
हाल ही में भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया कि भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बैठक में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन सीमा शुल्क स्थगन को जारी रखने का विरोध करेगा ।
WTO के सदस्य देशों ने वर्ष 1998 के बाद से, इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क नहीं लगाने पर सहमति व्यक्त की थी। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन में वस्तु (जैसे ई-बुक्स और म्यूजिक डाउनलोड) तथा सेवाओं, दोनों को शामिल किया गया है।
इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क स्थगन (moratorium) को समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है। वर्तमान में डिजिटल व्यापार में तकनीकी रूप से सक्षम और विकसित देशों का वर्चस्व है। इसलिए, सीमा शुल्क स्थगन पूरी तरह से विकसित देशों के पक्ष में झुका हुआ है।
भारत, विकासशील देशों पर स्थगन के प्रतिकूल प्रभाव को उजागर करने के लिए कई बार संयुक्त आवेदन दे चुका है।
इस कारण से विकासशील देशों को प्रशुल्क के रूप में 10 अरब डॉलर की वार्षिक राजस्व हानि होने का अनुमान है। भारत को वार्षिक लगभग 50 करोड़ डॉलर का नुकसान होता है।
पहले की भौतिक वस्तुओं (DVDs की जगह ऑनलाइन स्ट्रीमिंग, मुद्रित पुस्तकों की जगह ई-बुक्स आदि) के डिजिटलीकरण से राजस्व की हानि हुई है।
यदि 3D प्रिंटिंग तकनीक में निवेश को दोगुना कर दिया जाता है, तो यह संभावित रूप से वर्ष 2047 तक सीमा पार भौतिक वैश्विक व्यापार में 40% तक की कमी कर सकता है। इससे राजस्व की और हानि हो सकती है।
आयात शुल्क स्थगन की समाप्ति विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे वे डिजिटल क्षेत्र में अपनी प्रगति को देखते हुए नीतियां बना सकेंगे। इसके माध्यम से वे आयात को विनियमित कर सकेंगे और राजस्व प्राप्त कर सकेंगे।
हालांकि, शुल्क स्थगन के समर्थकों का दावा है कि सीमा शुल्क लगाने से डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
स्रोत –द हिन्दू