इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड

इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड

‘ऋणशोधन एवं दिवालियापन संहिता’ (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड- आईबीसी) की धारा 32A सहित विभिन्न धाराओं की संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा है।इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड - Insolvency and Bankruptcy Code

आईबीसी की धारा 32A:

आईबीसी की धारा 32A में यह प्रावधान किया गया है कि न्यायायिक प्राधिकरण द्वारा समाधान योजना को मंजूरी देने के बाद, कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया प्रारंभ होने के पहले के पहले के अपराधों के लिए कॉरपोरेट देनदार पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

आईबीसी की इस धारा के तहतही समाधान योजना के अंतर्गत सम्मिलित कॉर्पोरेट देनदार की संपत्ति पर कार्रवाई नहीं की जाएगी।

इनसॉल्वेंसी:

दिवाला या इनसॉल्वेंसी एक ऐसी स्थिति है, जहां कोई व्यक्ति या कंपनी अपना बकाया कर्ज नहीं चुका पाती हैं।

कानूनी प्रावधान:

वर्ष 1985 तक भारत में कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी और दिवालियापन से निपटने के लिये केवल एक ही कानून (कंपनी अधिनियम, 1956) था।

वर्ष 1985 में ‘रूग्ण औद्योगिक कंपनी अधिनियम, 1985 के बाद वर्ष 1993 में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध  ऋण वसूली अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत ऋण वसूली न्यायाधिकरणों की स्थापना की गई।

सरफेसी अधिनियम – 2002

  • वर्ष 2002 में सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act) को लागू किया गया और इसी दौरान आरबीआईद्वारा कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन हेतु एक योजना प्रस्तुत की गई जिसमें बैंकों के लिये व्यापक दिशा-निर्देश शामिल किये गए थे।
  • यह कोड ऋणधारक कंपनियों और व्यक्तियों दोनों पर लागू होता है। साथ ही यह कोड इंसाल्वेंसी के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया का निर्धारण करता है।
  • इंसाल्वेंसी प्रक्रिया में देरी और कानूनी जटिलताओं जैसी समस्याओं को दूर करने के लिये वर्ष 2016 में ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड को लागू किया गया।

आईबीसी और निगमित दिवालियापन:

  • दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड, 2016 वर्तमान समय की मांग है, क्योंकि यह व्यक्तियों और निगमों, दोनों के लिये दिवालिया प्रक्रिया को व्यापक और सरल बनाता है।
  • इसकी सीमा के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के लोग आते हैं, जिसमें किसानों से लेकर अरबपति व्यवसायी और स्टार्टअप से लेकर बड़े कॉर्पोरेट घराने शामिल हैं।
  • ऋणशोधन एवं दिवालियापन संहिता समयबद्ध दिवाला और शोधन समाधान (लगभग 180 दिनों के अंदर, जैसी भी परिस्थिति हो) प्रदान करता है।
  • यदि कोई कंपनी कर्ज़ वापस नहीं चुकाती तो आईबीसीके अंतर्गत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके लिये NCLT की विशेष टीम कंपनी से बात करती है और कंपनी के प्रबंधन के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
  • इसके बाद उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्ज़ा हो जाता है और बैंक उस संपत्ति को किसी अन्य कंपनी को बेचकर अपना कर्ज़ वसूल सकता है।
  • आईबीसी में बाज़ार आधारित और समय-सीमा के अंतर्गत इन्सॉल्वेंसी समाधान प्रक्रिया का प्रावधान है।
  • आईबीसी की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई बाहरी व्यक्ति (थर्ड पार्टी) ही कंपनी को खरीद सकता है।

Source- The Hindu

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