इंडो – पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रोस्पेरिटी (IPEF)
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने IPEF के लिए टैरिफ में परिवर्तनों और निर्यात प्रतिबंधों के संबंध में अग्रिम नोटिस देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है
इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रोस्पेरिटी (IPEF) अमेरिका के नेतृत्व वाला एक आर्थिक समूह है।
इसमें भारत सहित 14 साझेदार देश शामिल हैं। ये देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 40 प्रतिशत और वैश्विक वस्तुओं एवं सेवाओं के व्यापार के 28 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
IPEF निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित है:
व्यापार;
आपूर्ति श्रृंखला;
‘स्वच्छ ऊर्जा, विकार्बनीकरण और अवसंरचना; तथा कर व भ्रष्टाचार – रोकथाम ।
IPEF के सदस्यों को सभी चार स्तंभों में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है। भारत IPEF के व्यापार स्तंभ में शामिल नहीं हुआ है।
आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली के अंतर्गत, अमेरिका ने प्रस्ताव दिया है कि IPEF सदस्यों को अपने आयात टैरिफ में किसी प्रकार का परिवर्तन करने या निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से पहले अग्रिम नोटिस देना चाहिए।
अग्रिम नोटिस देने के क्या लाभ हैं?
अप्रत्याशित कदम उठाए जाने की संभावना कम हो जाती है, बदलाव के अनुरूप व्यवस्थित होने के लिए समय मिल जाता है तथा व्यापारिक साझेदार देशों को कम नुकसान उठाना पड़ता है।
यह कदम निर्यात प्रतिबंधों के खिलाफ रक्षोपाय प्रदान करेगा, अन्यथा ये प्रतिबंध किसी देश के व्यापक आर्थिक संकेतकों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। अग्रिम नोटिस से जुड़ी हुई चिंताएं
इससे व्यापार में बाधा पैदा होगी और अनुचित लाभ प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होगा ।
अग्रिम नोटिस देने की स्थिति में टैरिफ और प्रतिबंध लगाने वाले देश को IPEF के साझेदार देशों के दबाव में आकर इसे टालना पड़ सकता है।
यह स्वतंत्र टैरिफ नीति का अनुपालन करने की सदस्य देशों की शक्तियों को सीमित करता है ।
भारत ने अमेरिका के इस कदम पर चिंता प्रकट की है और कहा है कि इस तरह की व्यवस्था से विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का उल्लंघन होगा। साथ ही, इससे सरकार की नीति निर्माण की संप्रभुता और स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।
स्रोत – फाइनेंस एक्सप्रेस