इंडिया विंड एनर्जी मार्केट आउटलुक 2026 रिपोर्ट
हाल ही में इंडिया विंड एनर्जी मार्केट आउटलुक 2026 की रिपोर्ट जारी की गई है। इसके अनुसार भारत में नई पवन ऊर्जा क्षमताओं का वार्षिक संस्थापन वर्ष 2024 तक सर्वोच्च स्तर पर होगा ।
यह रिपोर्ट ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल ने जारी की है। इसमें विकार्बनीकरण और ग्रिड प्रणाली में लचीलेपन के निर्माण के लिए पवन ऊर्जा की लगातार बढ़ती प्रमुख भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% बिजली प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
इसके अतिरिक्त, वर्ष 2022 के अंत तक 60 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य भी प्रस्तुत किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष-
- भारत वर्ष 2026 तक पवन ऊर्जा स्रोत से 23.7 गीगावाट अतिरिक्त ऊर्जा क्षमता संस्थापित कर सकता है। ऐसा वह सक्षम नीतियां बनाकर, सुविधाएं प्रदान करके और सही संस्थागत उपायों के माध्यम से कर सकता है।
- वर्ष 2017 से भारत में पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की गति धीमी रही है।
- भारत में नई पवन ऊर्जा क्षमताओं का वार्षिक संस्थापन वर्ष 2024 तक सर्वोच्च स्तर पर होगा। यह 4.6 गीगावाट तक पहुंच जाएगा।
- वर्ष 2024 के बाद, नई परियोजनाओं का स्वरूप पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाएं होने की संभावना है।
प्रमुख चुनौतियां-
- अक्षय ऊर्जा उत्पादन करने वालों का बकाया भुगतान बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2021 में इनका बकाया 19,400 करोड़ रुपये था।
- कोविड-19 और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं के कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हो रही है।
- वर्ष 2017 में निविदाएं देने के लिए नीलामी व्यवस्था आरंभ की गई थी। इसकी वजह से अधिक प्रतिस्पर्धी बोलियां लगाने की प्रथा शुरू हुई।
- पवन ऊर्जा गुजरात और तमिलनाडु के कुछ सब-स्टेशनों के आसपास सिमट कर रह गई है। इस वजह से यह सौर ऊर्जा से भी महंगी होती जा रही है।
पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए की गई पहले-
- त्वरित मूल्यहास लाभ की सुविधा उपलब्ध कराई गई है;
- पवन ऊर्जा जनरेटर्स के कुछ घटकों पर रियायती सीमा शुल्क छूट दी गयी है;
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (CBI) योजना शुरू की गई है;
- पवन और सौर ऊर्जा के लिए अंतर्राज्यीय पारेषण शुल्क को समाप्त कर दिया गया है।
स्रोत –द हिन्दू