ऑक्सफैम इंडिया ने ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट, 2022
हाल ही में ऑक्सफैम इंडिया ने ‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022’ जारी की है।
रिपोर्ट में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि, भारत में महिलाओं के पास पुरुषों के समान शैक्षिक योग्यता और समान कार्य अनुभव होने के बावजूद भी उनसे श्रम बाजार में भेदभाव किया जाएगा।
इस भेदभाव का प्रमुख कारण समाज और नियोक्ताओं का पूर्वाग्रह है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष वर्ष 2004-05 से वर्ष 2019-20 तक रोजगार और श्रम पर सरकार के आंकड़ों पर आधारित हैं।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- पुरुषों और महिलाओं के बीच मौजूद 98% रोजगार अंतराल के लिए लैंगिक भेदभाव जिम्मेदार है।
- पुरुषों और महिलाओं की आय में 93% के अंतर की वजह भी भेदभाव ही है।
- वेतनभोगी महिलाओं के कम वेतन के लिए भेदभाव (67%) और शिक्षा व कार्य अनुभव (33%) की कमी जिम्मेदार हैं।
- स्व-नियोजित अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोग गैर-अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोगों की तुलना में 5,000 रुपये कम कमाते हैं। इस अंतर के लिए भेदभाव 41% जिम्मेदार है।
- महिला अनियत (casual) कर्मी अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में लगभग 3,000 रुपये कम कमाती हैं।
प्रमुख सिफारिशें–
- कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इनमें वेतन वृद्धि, कौशल में सुधार, नौकरी में आरक्षण और मां बनने के बाद कार्य पर लौटने के लिए आसान विकल्प उपलब्ध कराना शामिल हैं।
- सभी महिलाओं के लिए समान वेतन और कार्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
- घरेलू कार्य और बच्चों की देखभाल संबंधी कर्तव्यों का महिलाओं एवं पुरुषों के बीच अधिक समान बंटवारा सुनिश्चित करने के उपाय किए जाने चाहिए।
- विशेष रूप से सभी अनौपचारिक श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी की बजाय “निर्वाह मजदूरी” लागू की जानी चाहिए।
- जहां तक संभव हो अनुबंधात्मक, अस्थायी और अनियत कार्य को औपचारिक कार्य में बदला जाना चाहिए।
निर्वाह मजदूरी : वह मजदूरी है, जो श्रमिकों और उनके परिवारों को उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाती है
न्यूनतम मजदूरी : पारिश्रमिक की वह न्यूनतम राशि है, जिसका एक निश्चित अवधि के दौरान किए गए कार्य के लिए वेतनभोगी को एक नियोक्ता द्वारा भुगतान किया जाता है। इस वेतन/ पारिश्रमिक को सामूहिक समझौते या व्यक्तिगत अनुबंध द्वारा कम नहीं किया जा सकता है।
स्रोत –द हिन्दू