हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति ने इंटरनेट शटडाउन को लेकर केंद्र की आलोचना की है ।
इंटरनेट शटडाउन द्वारा सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है। इसे किसी विशिष्ट आबादी या स्थान के लिए इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक संचार में जानबूझकर उत्पन्न की गई बाधा के रूप में परिभाषित किया गया है।
इसे इंटरनेट ब्लैकआउट, सोशल मीडिया शटडाउन या थॉटलिंग के माध्यम से संपन्न किया जा सकता है।
समिति द्वारा निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया गयाः
- इंटरनेट शटडाउन स्थानीय अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाओं, प्रेस की स्वतंत्रता और शिक्षा को बहुत प्रभावित करता है।
- उन स्थानों पर दूरसंचार ऑपरेटरों को प्रत्येक सर्किल क्षेत्र में प्रति घंटे 45 करोड़ रुपये का नुकसान होता है, जहां इंटरनेट शटडाउन या थ्रॉटलिंग की जाती है।
- इंटरनेट पर निर्भर अन्य व्यवसायों को इस राशि के 50% तक का नुकसान होता है।
- वर्तमान में इंटरनेट शटडाउन के निर्धारण के लिए कोई सुस्पष्ट नियम नहीं है।
- इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव आकलन का अध्ययन नहीं करने के कारण दूरसंचार मंत्रालय की आलोचना की जाती है।
प्रमुख सिफारिशें:
- संपूर्ण इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने की बजाय आतंकवादी/असामाजिक तत्वों द्वारा उपयोगकी जाने वाली चयनित सेवाओं (जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप आदि) पर प्रतिबंध लगाने वाले विकल्पों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- समय-समय पर इंटरनेट शटडाउन की समीक्षा करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया होनी चाहिए।
भारत में इंटरनेट शटडाउन से संबंधित कानूनी प्रावधान
- वर्ष 2017 तक, अधिकतर प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (P.C) की धारा 144 और भारतीय तार अधिनियम, 1885 के तहत शासित होते थे।
- वर्ष 2017 में, दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात और लोक सुरक्षा) नियमों को अधिसूचित किया गया था। नियमों के बावजूद सरकार ने धारा 144 के तहत व्यापक शक्तियों का भी उपयोग किया है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 69A कुछ विशेष वेबसाइट्स को ब्लॉक करने की शक्ति प्रदान करती है।
स्रोत – द हिन्दू