आर्कटिक में सैन्यीकरण हेतु रूस का परमाणु – संचालित आइसब्रेकर लॉन्च
हाल ही में रूस ने सेंट पीटर्सबर्ग में परमाणु- संचालित दो आइसब्रेकर लॉन्च किए हैं। इसकी सहायता से रूस स्वयं को “महान आर्कटिक शक्ति के रूप में मजबूत करना चाहता है।
परमाणु – संचालित आइसब्रेकर संवेग प्राप्त करने और बर्फ पर अपने नुकीले हिस्से को गति देने के लिए परमाणु ईंधन का उपयोग करता है। आइसब्रेकर के नुकीले हिस्से द्वारा बल लगाने से बर्फ टूट जाती है।
वर्तमान में, रूस विश्व में एकमात्र ऐसा देश है, जो परमाणु – संचालित आइसब्रेकर बना रहा है।
आइसब्रेकर लॉन्च का महत्व:
यह उत्तरी समुद्री मार्ग में बर्फ रूपी बाधा को दूर करेगा। इससे एशिया तक पहुंचने में स्वेज नहर के वर्तमान मार्ग की तुलना में दो सप्ताह कम समय लगेगा।
रूस वर्ष 2035 तक वैश्विक लिक्विड नेचुरल गैस (LNG) बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहता है। इस लक्ष्य प्राप्ति में आर्कटिक की मुख्य भूमिका होगी।
आर्कटिक क्षेत्र क्यों महत्वपूर्ण है?
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है और आर्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही हैं। ऐसे में बर्फ पिघलने से नए समुद्री मार्ग खुलेंगे और आर्थिक अवसर भी पैदा होंगे।
पृथ्वी पर मौजूद तेल और प्राकृतिक गैस का लगभग 22% भंडार आर्कटिक क्षेत्र में विद्यमान है। मीथेन हाइड्रेट जैसे संसाधन भी यहां मौजूद हैं।
बेरेंट्स जैसे क्षेत्र में जहाजों की आवाजाही के लिए सबसे अच्छे गहरे बंदरगाह मौजूद हैं।
अंटार्कटिका के विपरीत, आर्कटिक विश्व के सभी देशों के साझा क्षेत्राधिकार में नहीं है। इस तथ्य से समस्या बढ़ जाती है।
आर्कटिक में अन्य देशों / संगठनों की रूचि
भारत: भारत वर्ष 2007 से आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम संचालित कर रहा है। इस कार्यक्रम के तहत अब तक 13 अभियान चलाए जा चुके हैं।
इससे पहले, भारत ने “भारत और आर्कटिकः सतत विकास के लिए साझेदारी का निर्माण” शीर्षक से अपनी पहली आर्कटिक नीति घोषित की थी ।
भारत, आर्कटिक परिषद के 13 पर्यवेक्षकों (Observers) में से एक है।
चीन: चीन स्वयं को आर्कटिक का एक निकटवर्ती देश मानता है। इसने ‘ध्रुवीय रेशम मार्ग (Polar Silk Route) के निर्माण की भी घोषणा की है।
नाटो (NATO): उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) इस क्षेत्र में नियमित युद्धाभ्यास करता रहा है।
स्रोत – द हिन्दू