आरोपी को जेल की बजाय जमानत को बढ़ावा देने के लिए मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निचली न्यायपालिका में आरोपी को जेल की बजाय जमानत को बढ़ावा देने के लिए मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित किया है ।
उच्चतम न्यायालय ने जमानत को प्रोत्साहित करने के विभिन्न निर्देशों के बावजूद निचली अदालतों द्वारा राहत देने में अनिच्छा प्रकट करने पर चिंता व्यक्त की है।
भारत में अनुमानित 70% कैदी, विचाराधीन कैदी हैं। इसके परिणामस्वरूप जेलों में भीड़-भाड़, चिकित्सा में देरी, अस्वच्छ स्थिति और कुपोषण जैसी समस्याएं विद्यमान हैं।
SC ने कहा कि जब आरोपी जांच में सहयोग कर रहा हो, तो गिरफ्तारी नियमित तरीके से नहीं की जानी चाहिए।
SC ने अक्टूबर माह में विभिन्न श्रेणियों के अपराधों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।
परिवर्तन के नए बिंदु
1. सात वर्ष या उससे कम के कारावास के साथ दंडनीय।
आरोप-पत्र प्रस्तुत करते समय वकील के माध्यम से पेश होने के लिए अभियुक्तों को सामान्य समन जारी किया जाना चाहिए। अगर पेशी नहीं होती है, तो पहले जमानती वारंट जारी किया जाए और बाद में गैर-जमानती वारंट जारी किया जाए।
2. मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक कारावास के साथ दंडनीय।
जमानत आवेदन का निर्णय आरोपी के न्यायालय में पेश होने पर गुणावगुण के आधार पर होगा।
3. जमानत के लिए कड़े प्रावधानों वाले विशेष अधिनियमों के तहत दंडनीय जैसे NDPS, PMLA, UAPA आदि।
विशिष्ट कानूनों के तहत जमानत के प्रावधानों के अनुपालन की अतिरिक्त शर्त के साथ श्रेणी B और D के समान होगा।
4. विशेष अधिनियमों द्वारा कवर नहीं किए गए आर्थिक अपराध ।
जमानत आवेदन का निर्णय आरोपी के न्यायालय में पेश होने पर गुणावगुण के आधार पर होगा।
स्रोत – द हिन्दू