आयुष मंत्रालय द्वारा आयुष क्षेत्र पर 5 पोर्टल लॉन्च
हाल ही में आयुष मंत्रालय ने आयुष क्षेत्र पर पांच पोर्टल लॉन्च किए हैं।
इसका उद्देश्य भारतीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन में आयुष की भूमिका को अधिकतम करना और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का भंडार निर्मित करना है, जिसमें राष्ट्रीय विरासत, रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का संरक्षण किया जाएगा।
लॉन्च किए गए पोर्टल्स का अवलोकन और महत्वः
- क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (CTRI) में आयुर्वेद डेटासेट:CTRI को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के इंटरनेशनल क्लिनिकल द्रायल रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म के तहत मान्यता प्राप्त है। CTRI में आयुर्वेद डेटा सेट का निर्माण करने से संपूर्ण विश्व में अब आयुर्वेद के तहत किए जा रहे नैदानिक परीक्षणों को और अधिक सरलता से देखा जासकेगा।
- केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS) द्वारा विकसित रिसर्च मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टमपोर्टल (RMIS): यह आयुर्वेद आधारित अध्ययनों में अनुसंधान और विकास के लिए एकल बिंदु समाधान है ।
- ई-मेधा (इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल हेरिटेज एक्सेसेशन) पोर्टलः राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) की मदद से ई-ग्रंथालय प्लेटफार्म में संग्रहीत 12000 से भी अधिक भारतीय चिकित्सीय विरासत संबंधी पांडुलिपियों और पुस्तकों काकैटलॉग ऑनलाइन उपलब्ध हो सकेगा।
- अमर (आयुष मैन्यूस्क्रिप्ट्स एडवांस्ड रिपॉज़िटरी) पोर्टलः पोर्टल ने भारत में या विश्व के अन्य हिस्सों में पुस्तकालयों या व्यक्तिगत संग्रह में आयुष की पांडुलिपियों और कैटलॉग को खोजने के लिएदुर्लभ एवं कठिन जानकारी को डिजिटाइज़ किया है।
- साही (शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इंप्रिंट्स) पोर्टलः शिलालेख, पुरा-वानस्पतिक (आर्कियो-बोटैनिकल) जानकारी, मूर्तियां, भाषाशास्त्रीय स्रोत और उन्नत पुरातात्विक आनुवंशिक अध्ययन की जानकारी प्राप्त होगी।
आयुष (AYUSH) का फुल फॉर्म :
- आयुर्वेदा(AAYURVEDA): सकारात्मक स्वास्थ्य व आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए जीवन पद्धति।
- योग(YOGA): हृदय वदेह में सामंजस्य स्थापित करना।
- प्राकृतिक चिकित्सा (NATUROPATHY): मानव शरीर स्व-उपचार में सक्षम है।
- यूनानी (UNANI): स्वस्थ आत्मा का निर्माण केवल स्वस्थ शरीर द्वारा हीहो सकता है।
- सिद्दा (SIDDHA): स्वस्थ होने या रोगी होने दोनों ही परिस्थितियों में खानपान व पाचन की स्थिति का सर्वाधिक महत्त्व है।
- होम्योपैथी(HOMOEOPATHY): प्राक्रतिक रोगों का ऐसे पदार्थों द्वारा उपचार किया जाता है जो स्वयं रोग/ पीड़ा की भांति प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
स्रोत – पीआईबी