आयात में गिरावट के कारण भारत में उर्वरक के भंडारों में कमी
हाल ही में आई आयात में गिरावट के कारण भारत में उर्वरक के भंडारों में कमी हो गई है।
उर्वरक विभाग के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि डाय-अमोनियमफॉस्फेट (DAP), म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) तथा अन्य प्रमुख गैर-यूरिया उर्वरकों के भंडार में गिरावट आई है। भंडार में मौजूदा कमी आगामी रबी सीजन में इनकी उपलब्धता को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न करती है।
अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आयात में गिरावट आई है। इसके अतिरिक्त, उर्वरकों की बिक्री हेतु सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) आयात को हतोत्साहित करता है, क्योंकि इससे कंपनियों को न तो लाभ होता है और न ही हानि होती है।
सरकार द्वारा घोषित उर्वरक नीतियां
- यूरिया के लिए लागू नई मूल्य निर्धारण योजना: इसके तहत निर्माताओं को उत्पादन लागत तथा बिक्री मूल्य/MRP के मध्य के अंतर का भुगतान सब्सिडी/रियायत के रूप में किया जाता है।
- नीम लेपित यूरिया नीति (Neem Coated Urea Policy): 2015 के तहत घरेलू उर्वरक कंपनियों के लिए अपने यूरिया उत्पादन का कम से कम 75 प्रतिशत “नीम लेपित करना अनिवार्य कर दिया गया है।
- फॉस्फेटिक और पोटाश के लिए-पोषक तत्व आधारित सब्सिडी(Nutrient Based Subsidy: NBS) नीति, 2010: इसके तहत सरकार उर्वरक में निहित विभिन्न वृहद/ सूक्ष्म पोषक तत्वों के भार के आधार पर वार्षिक सब्सिडी तय करती है।
- सिटी कम्पोस्ट नीति, 2016: इस नीति के अंतर्गत शहरी कम्पोस्ट के विपणन एवं प्रचार-प्रसार के लिए उर्वरक कंपनियों को 1,500 रुपये प्रति टन सिटीकम्पोस्ट कीसहायता का प्रावधान किया गया है।
वित्त वर्ष 2020 में भारत की उर्वरक खपत लगभग 60 मिलियन टन थी, जिसमें से 55 प्रतिशत यूरिया था। इसमें वित्त वर्ष 2021 के दौरान 5 मिलियन टन की बढ़ोतरी होना अपेक्षित है।
मार्च 2021 तक कुल घरेलू उर्वरक उत्पादन 37 मिलियन टन था। इसमें से यूरियाका उत्पादन 21 मिलियन टन था तथा शेष 23 मिलियन टन का आयात किया गया था।
स्रोत – द हिन्दू