आपराधिक कानून सुधार
आपराधिक कानून सुधार के लिए केंद्रीय गृह मंत्री ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, सांसदों व मुख्यमंत्रियों से सुझाव मांगे हैं ।
भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC), 1974 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA), 1872 में संशोधन के लिए सुझाव मांगे गए हैं।
- पिछले वर्ष गृह मंत्रालय ने आपराधिक कानूनों में सुधार की सिफारिश करने के लिए एक समिति का गठन किया था।
- मलीमथ समिति व मेनन समिति सहित विभिन्न समितियों ने समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव दिए हैं। आपराधिक कानूनों में सुधार की आवश्यकता इसलिए महसूस की जा रही है, ताकि उन्हें वर्तमान आवश्यकताओं और लोगों की आकांक्षाओं के अनुसार अनुकूलित किया जा सके। साथ ही, सुनवाई में तीव्रता लाई जा सके एवं जांच तंत्र में सुधार किया जा सके।
सुधारों के संभावित क्षेत्रः
- अपराध से पीड़ित लोगों के अधिकारों की पहचान करनाः पीड़ित और गवाह संरक्षण योजनाओं को लागू करना चाहिए। आपराधिक मुकदमों की सुनवाई में पीड़ितों की भागीदारी में वृद्धि से आपराधिक न्याय प्रणाली में पीड़ितों की भूमिका भी बढ़ेगी।
- कुछ अवैध कार्यों को अपराध घोषित करना और वर्तमान अपराधों का नए सिरे से वर्गीकरण करनाः उदाहरण के लिए, अपराध को स्वीकार करने से जुड़े प्रश्नों को नवीन दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
- नए प्रकार के दंड: जैसे सामुदायिक सेवा आदेश, क्षतिपूर्ति आदेश और फिर से सुधार करने का अवसरदेने वाली न्याय प्रणाली के अन्य पहलुओं को भी लागू किया जा सकता है।
- सिद्धांतों पर आधारित दंड व्यवस्थाः वर्तमान में न्यायाधीशों को दंड की मात्रा और प्रकृति निर्धारित करने का विवेकाधिकार प्राप्त है। उनके द्वारा प्रायः समान प्रकृति और/या गंभीरता वाले अपराधों के लिए दोषियों को अलग-अलग प्रकार का दंड दिया जाता है।
IPC सभी आपराधिक कृत्यों और उनके लिए निर्धारितदंडों को शासित करता है। Cr.P.C यह उल्लेख करता है कि जब जांच और सुनवाई के दौरान न्यायालय जांच एवं प्रक्रिया का पालन करते हैं, तब पुलिस तंत्र कैसे कार्य करता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA), विधिक न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को शासित करता है।
स्रोत –द हिन्दू