आदर्श किराएदारी कानून
आदर्श किराएदारी कानून लागू होने के एक वर्ष बाद भी इसे केवल चार राज्यों ने अपनाया है ।
इन चार राज्यों अर्थात आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और असम ने आदर्श किराएदारी कानून के अनुसार अपने किराएदारी कानूनों को संशोधित किया है।
आवास, संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची का विषय है। इसलिए, यह अधिनियम राज्यों के लिए केवल परामर्श जैसा है। राज्य सरकारें रेंटल हाउसिंग और समझौतों को विनियमित करते समय इस अधिनियम का पालन करने पर विचार कर सकती हैं।
आदर्श किराएदारी अधिनियम (Model Tenancy Act) के बारे में
यह कानून रेंटल हाउसिंग को क्रमिक रूप से औपचारिक बाजार का रूप देकर इसे संस्थागत बनाने का प्रयास करता है।
इसके तीन प्राथमिक उद्देश्य हैं:
- इसका उद्देश्य आवासीय और व्यावसायिक परिसरों को किराए पर देने की प्रक्रिया को विनियमित करना है। इस कानून में किरायेदारी, बेदखली और संपत्ति के प्रबंधन के लिए शर्ते शामिल हैं।
- किराएदारी को विनियमित करते समय यह कानून मकान मालिकों और किरायेदारों के अधिकारों को संतुलित करने तथा उनकी रक्षा करने के लिए तंत्र का प्रस्ताव करता है।
- इस कानून में किराया संबंधी विवादों के त्वरित निपटान के लिए तीन स्तरों वाले न्याय निर्णय तंत्र का प्रावधान किया गया है।
आदर्श किराएदारी कानून क्यों जरूरी है?
- वर्तमान में जितने भी राज्य कानून हैं, वे संपत्ति के विवादों, समझौतों के गैर-अनुपालन और किराया नियंत्रण के बारे में अस्पष्ट हैं।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 1 करोड़ मकान खाली पड़े हैं। इनका उपयोग रहने के लिए किया जा सकता है।
- यह सभी के लिए पर्याप्त किराये के आवासों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
स्रोत –द हिन्दू