Question – आदर्श आचार संहिता की विशेषताओं पर चर्चा करते हुए बताइये कि क्या आदर्श आचार संहिता को विधिक रूप से प्रवर्तनीय बनाया जा सकता है। – 7 January 2022
Answer –
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की नींव होते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव को एक त्योहार के रूप में माना जाता है और सभी राजनीतिक दल और मतदाता मिलकर इस त्योहार में हिस्सा लेते हैं। चुनाव की इस हलचल में, जो उम्मीदवार मैदान में हैं, वे अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। ऐसे में सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल वोटरों के बीच जाते हैं।
ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को निर्धारित करने के लिए सभी को समान अवसर देना एक बड़ी चुनौती बन जाती है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम कर देती है।
आदर्श आचार संहिता की विशेषता
- वर्तमान में प्रचलित आदर्श आचार संहिता में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिये दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
- सबसे पहले तो आदर्श आचार संहिता लागू होते ही राज्य सरकारों और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं।
- सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जाते हैं।
- आदर्श आचार संहिता में रूलिंग पार्टी के लिये कुछ खास गाइडलाइंस दी गई हैं। इनमें सरकारी मशीनरी और सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिये न करने और मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि का ऐलान करने की मनाही है।
- मंत्रियों तथा सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत भी नहीं होती।
- सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर विज्ञापन जारी नहीं किये जा सकते हैं। इनके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान किसी की प्राइवेट लाइफ का ज़िक्र करने और सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी लगाई गई है।
- यदि कोई सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेता है तो चुनाव आयोग को उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। इसके अलावा चुनाव सभाओं में अनुशासन और शिष्टाचार कायम रखने तथा जुलूस निकालने के लिये भी गाइडलाइंस बनाई गई हैं।
- किसी उम्मीदवार या पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिये चुनाव आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है और इसकी जानकारी निकटतम थाने में देनी होती है।
- हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर कुछ उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होना चाहिये। इन्हें सभी उम्मीदवारों को समान रूप से मुहैया कराना चाहिये।
वर्तमान में, MCC विधिक रूप से प्रवर्तनीय नहीं है और ECI सामान्यतः इसके प्रवर्तन हेतु नैतिक स्वीकृति या आक्षेप का उपयोग करता है। हालांकि, राजनीतिक भाषणों के माध्यम से घृणा का प्रसार, मतदाताओं की जातिगत एवं सामुदायिक भावनाओं को उत्तेजित करना आदि जैसे विधि-विरुद्ध आचरणों को भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 एवं जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 इत्यादि जैसी अन्य विधियों में वर्णित प्रावधानों द्वारा निषिद्ध किया जा सकता है।
इस संदर्भ में, RPA, 1951 के तहत MCC को विधिक रूप से प्रवर्तनीय बनाने हेतु अनेक तर्क दिए गए हैं। इनमें शामिल हैं:
- चूंकि MCC प्रवर्तनीय नहीं है, इसलिए राजनीतिक दल अपने हितों के अनुरूप इसका उल्लंघन करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में निर्वाचन आयोग की शक्तियां सीमित होती हैं, क्योंकि वह इसके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता है। इसके द्वारा इनकी केवल भर्त्सना की जा सकती है और यह भी इसके मूल्यांकन के अधीन है। इससे MCC के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
- सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के साथ ही निर्वाचन संबंधी सूचना प्रवाह तीव्र हो गया है तथा इससे MCC के उल्लंघनों को नियंत्रित करना और अधिक जटिल हो गया है। MCC का उल्लंघन होने पर कार्रवाई करने हेतु इन मंचों पर विधिक रूप से बाध्यकारी दायित्वों के अधिरोपण से MCC का प्रवर्तन अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी सिद्ध होगा।
- चूंकि MCC में विधिक शक्ति निहित नहीं है, इसे कार्यकारी निर्णय-निर्माण के माध्यम से लागू किया जाता है। इसलिए जहाँ तक इसके कार्यान्वयन की पद्धति और निष्पादन की निश्चितता का संबंध है, यह अस्पष्ट तथा असमान बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में, कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने एमसीसी को आरपीए के रूप में मंजूरी दी थी, इसे 1951 के एक भाग के रूप में कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने की सिफारिश की थी।
हालांकि, एमसीसी प्रवर्तनीयता के खिलाफ तर्क भी दिए जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- आचार संहिता के ‘आदर्श’ (मॉडल) होने के कारण इसका प्रवर्तन वांछनीय है, न कि अनिवार्य। वांछनीय आचरण के अनिवार्य तत्वों के लिए पहले से ही विधिक रूप से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि कौन से आचरण कानूनी रूप से स्वीकार्य हैं और कौन से अस्वीकार्य हैं। MCC के अधिकांश उल्लंघन पहले से ही विभिन्न कानूनों यथा IPC और RPA, 1951के तहत दंडनीय हैं।
- प्रौद्योगिकी के युग में, ‘आदर्श’ आचरण का दायरा सीमित हो गया है और इसकी अवहेलना करने हेतु वैकल्पिक तरीकों की खोज समयानुसार की जाती रहती है। इस परिस्थिति में, कानून द्वारा प्रत्येक नए कृत्य को गैर-कानूनी घोषित करना कठिन हो जाएगा।
- ECI ने MCC के विरुद्ध तर्क देते हुए कहा है कि निर्वाचन अल्प समय अर्थात् 45 दिनों में संपादित हो जाने चाहिए, जबकि न्यायिक कार्यवाहियों में सामान्यतया अपेक्षाकृत अधिक समय लगेगा। साथ ही, इससे न्यायपालिका के कार्यभार में भी वृद्धि होगी।
- प्रवर्तनीयता के अभाव के बावजूद, ECI के पास MCC के उल्लंघनों की निगरानी के लिए अनेक तंत्र विद्यमान हैं। इनमें प्रवर्तन एजेंसियों के संयुक्त कार्य बल, cVIGIL मोबाइल ऐप जिसके माध्यम से कदाचारों के दृश्य-श्रव्य साक्ष्य की सूचना दी जा सकती है आदि शामिल हैं।
दरअसल, आदर्श आचार संहिता चुनाव सुधारों से जुड़ा एक अहम् मुद्दा है, जिससे और बहुत से चुनाव सुधारों का रास्ता खुलता है।
देखा जाए तो हर चुनाव के साथ हमारी डेमोक्रेसी में और निखार आता जा रहा है, लेकिन लोकतंत्र के इस उत्सव को सफल बनाने में चुनाव आयोग की कोशिशों के साथ देश के नागरिकों की भी यह जवाबदेही है कि इसे सफल बनाएँ।