आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार

आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार (Right against self- incrimination)

हाल में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री द्वारा आबकारी नीति मामले में जमानत की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने एक अदालत द्वारा 4 मार्च तक CBI हिरासत में भेजे जाने को चुनौती दी थी।

  • सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन डिप्टी सीएम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आने को सही नहीं ठहराया। उनके मुताबिक याची के पास, जबकि CrPC की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय जाने का विकल्प उपलब्ध है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई घटना दिल्ली में घटित हुई है, इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हाई कोर्ट की अनदेखी करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट आया जाये।
  • बता दें कि इससे पहले CBI के विशेष न्यायाधीश ने CBI को तत्कालीन डिप्टी सीएम सिसोदिया की हिरासत इस आधार पर दी थी कि वह जांच के दौरान “संतोषजनक जवाब देने में विफल” रहे थे।
  • अदालत ने सिसोदिया की उन दलीलों को खारिज कर दिया था कि उन्हें सेल्फ-इन्क्रिमिनेशन यानी खुद के खिलाफ गवाही देने या आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार (right against self-incrimination) है।

आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार क्या है?

  • भारतीय संविधान के भाग III (मौलिक अधिकार) में अनुच्छेद 20 (3) कहता है, “किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।”
  • दोषी साबित होने तक निर्दोष माने जाने का अधिकार, और पूछताछ के दौरान चुप रहने का अधिकार उपर्युक्त अधिकार से ही उत्पन्न हुआ है।
  • यह अधिकार यह भी सुनिश्चित करता है कि पुलिस किसी को अपराध स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है, और उस स्वीकारोक्ति के आधार पर सजा प्राप्त नहीं कर सकती है।
  • चूंकि अभियुक्त के खिलाफ उचित संदेह से परे मामले को साबित करने का दायित्व राज्य पर है, इसलिए किसी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाही देने या मुकदमे में अपने खिलाफ जाने वाली जानकारी साझा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
  • द स्टेट ऑफ बॉम्बे बनाम काठी कालू ओघड़ (1961) मामले में, सुप्रीम कोर्ट के ग्यारह न्यायाधीशों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि फोटोग्राफ, उंगलियों के निशान, हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान प्राप्त करने से अभियुक्त के ” आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार” का उल्लंघन नहीं होगा।
  • अदालत ने “साक्ष्य प्रस्तुत करने” और “गवाह बनने” के बीच अंतर किया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019) मामले में,अपने फैसले में लिखावट के नमूनों लेने के मापदंड में आवाज के नमूने लेने को भी शामिल किया और कहा कि आरोपी से इनके सैंपल लेना “आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार” का उल्लंघन नहीं होगा।
  • सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त की सहमति के बिना नार्कोएनालिसिस परीक्षण “आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार” का उल्लंघन होगा।
  • हालांकि, अभियुक्त से DNA नमूना प्राप्त करने की अनुमति है। यदि कोई अभियुक्त नमूना देने से इंकार करता है, तो अदालत उसके खिलाफ साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 की मदद ले सकती है।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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