आचार्य विनोबा भावे

आचार्य विनोबा भावे

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्य विनोबा भावे को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए सम्बोधित किया कि, “महात्मा गांधी ने उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है जो पूरी तरह से छुआछूत के खिलाफ थे, भारत की स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अडिग थे, और अहिंसा के साथ-साथ रचनात्मक कार्यों में दृढ़ विश्वास रखते थे। वह एक उत्कृष्ट विचारक थे।”

जीवन-परिचय एवं उल्लेखनीय कार्य:

  • विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में हुआ। उनका वास्तविक नाम विनायक नरहरि भावे था। इनके पिता का नाम नरहरि शंभू राव और माता का नाम रुक्मिणी देवी था।
  • विनोबा भावे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक थे और महात्मा गांधी के व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे। वह भूदान आंदोलन (भूमि-उपहार आंदोलन) के संस्थापक भी थे।
  • स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में भाग लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का आह्वान किया।
  • वर्ष 1940 में, उन्हें ब्रिटिश राज के विरुद्ध गांधीजी द्वारा भारत में पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सच्चाई के लिए खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
  • विनोबा भावे ने असमानता और गरीबी जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। 1950 के दशक के दौरान उनके सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रम लागू किए गए, जिनमें से एक भूदान आंदोलन भी था।
  • विनोबा भगवद गीता से अत्यधिक प्रभवित थे। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से 1959 में ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना किया साथ ही गोहत्या पर कड़ा रुख अख्तियार किया।
  • उन्होंने अपने जीवन में कई किताबें लिखीं। अधिकांश पुस्तकें अध्यात्म पर थीं। मराठी, तेलुगु, गुजराती, कन्नड़, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत सहित कई भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने संस्कृति में लिखे कई शास्त्रों का आम भाषा में अनुवाद किया। उनके द्वारा लिखी गई कुछ पुस्तकों में स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन, तीसरी शक्ति शामिल हैं।

स्रोत – पी आई बी

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