आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य के लिए विशेष राज्य के दर्जे की माँग रखी है।
राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए विशेष शर्तें:
- जनजातीय आबादी की बहुलता हो और आबादी का घनत्व काफी कम हो।
- इनके अलावा राज्य का पिछड़ापन, भौगोलिक स्थिति, सामाजिक समस्याएँ भी इसका आधार हैं।
- वह राज्य दुर्गम इलाकों वाला पर्वतीय भूभाग हो।
- राज्य का कोई हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा हो।
- प्रति व्यक्ति आय और गैर कर राजस्व काफी कम हो।
- आधारभूत ढाँचे का अभाव हो।
संविधान में प्रावधान:
भारतीय संविधान में किसी भी राज्य के लिए विशेष श्रेणी के राज्य का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन भूतपूर्व योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद् ने ये मानते हुए कि देश के कुछ इलाके तुलनात्मक रूप से दूसरे इलाकों से पिछड़े हुए हैं, उन्हें अनुच्छेद 371 के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता देने का प्रावधान किया था। इसके आधार पर आगे चलकर कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया।
कब किसे मिला दर्जा?
- 1969-1974 : चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान पहली बार असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड।
- 1974-1979 : पाँचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा।
- 1990 के वार्षिक योजना में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम जुड़े।
- 2001 को उत्तराखंड को यह दर्जा मिला।
विशेष राज्य के दर्जे से लाभ:
इन मापदंडों को पूरा करने वाले राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत प्रदान की गई राशि में 90 प्रतिशत अनुदान और 10 प्रतिशत ऋण होता है।
अन्य राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत 70 प्रतिशत राशि ऋण के रूप में और 30 प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में दी जाती है।
विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के बाद केंद्र सरकार ने इन राज्यों को विशेष पैकेज सुविधा और टैक्स में कई तरह की राहत दी है।
इससे निजी क्षेत्र इन इलाकों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं जिससे क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिलता है और उनका विकास सुनिश्चित होता है।
संविधान के 12वें भाग के पहले अध्याय में केंद्र-राज्यों के वित्तीय संबंधों का उल्लेख है।
गाडगिल फॉर्मूला:
तीसरी पंचवर्षीय योजना अर्थात 1961-66 तक और फिर 1966-1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं था।
1969 में केंद्रीय सहायता का फार्मूला बनाते समय पाँचवें वित्त आयोग ने डी.आर. गाडगिल फॉर्मूले का अनुमोदन करते हुए तीन राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया-असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर।
इसका आधार इन राज्यों का आर्थिक पिछड़ापन, दुरूह भौगोलिक स्थिति और वहाँ व्याप्त सामाजिक समस्याएँ थी ।
उसके बाद के वर्षों में पूर्वोत्तर के शेष पाँच राज्यों के साथ तीन अन्य राज्यों को भी यह दर्जा दिया गया।
डी.आर. गाडगिल फॉर्मूला:
विशेष श्रेणी के राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद जो संसाधन बच जाते हैं, उन्हें 60% जनसंख्या के आधार पर, 25% राज्य की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर, 7.5% राजकोषीय प्रदर्शन के आधार पर और 7.5% इन राज्यों की विशेष परिस्थितियों के आधार पर वितरित किया जाता है।
स्रोत – द हिन्दू