हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की सीमा बढ़ाने के लिए आंतरिक कार्य समूह (IWG) की सिफारिश को स्वीकार किया है ।
IWG आंतरिक कार्य समूह का गठन वर्ष 2020 में भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों केलिए मौजूदा स्वामित्व संबंधी दिशा-निर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा करने के लिए किया गया था।
RBI द्वारा स्वीकार की गई प्रमुख सिफारिशें
- प्रवर्तक शेयरधारिता की मौजूदा सीमा को 15% से बढ़ाकर 26% करना।
- इस प्रकार, प्रवर्तक निजी क्षेत्र के बैंकों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होंगे। इससे निजी क्षेत्र के बैंकों को अधिक स्थिरता प्राप्त होगी। यह जमा धारकों को अधिक सुविधा प्रदान करेगा।
- प्रवर्तक, अपने विवेक से पांच वर्ष की अवरुद्धता अवधि (lock-in period) के बाद शेयर धारिता को 26% से भी कम करने का विकल्प चुन सकते हैं।
- लघु वित्त बैंकों (SFB) को संचालन शुरू होने के 8 वर्षों केभीतर सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।
- सर्वव्यापी बैंकों (universal banks) के लिए NBFCs और SFB का रूपांतरण समय 10 वर्ष रहेगा।
- हालांकि, बड़े कॉरपोरेट्स/ औद्योगिक घरानों को बैंकों के प्रवर्तन की अनुमति देने की IWG की सिफारिशों पर RBI ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है।
कॉर्पोरेट को लाइसेंस देने के संभावित लाभ: पूंजीकरण में सहायता, वैश्विक मंच पर भारतीय बैंकिंग उद्योग काविस्तार, प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, जमा धारकों के लिए अधिक 2 विकल्प आदि।
कॉरपोरेट को लाइसेंस देने के संभावित जोखिमः
अपने स्वयं के समूह की कंपनियों में धन उधार देने से धोखाधड़ी और चूक का जोखिम बढ़ सकता है। खराब कॉर्पोरेट गवनेंस, आर्थिक शक्तियों का संकेन्द्रण और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न कर सकती है।
स्रोत – द हिन्दू