असम में रेंगमा नागाओं द्वारा स्वायत्त परिषद की मांग

असम में रेंगमा नागाओं द्वारा स्वायत्त परिषद की मांग

हाल ही में असम में रेंगमा नागाओं (Rengma Nagas) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) को एक क्षेत्रीय परिषद में अपग्रेड करने के निर्णय के बीच एक स्वायत्त जिला परिषद (Autonomous District Council) के गठन करने की मांग की है।

संबंधित प्रकरण:

  • रेंगमा नागा पीपुल्स काउंसिल (आरएनपीसी) ने ज्ञापन में कहा कि रेंगमा असम के ऐसे पहले आदिवासी समुदाय था जिन्होंने 1839 में अंग्रेजों का सामना किया था, लेकिन मौजूदा रेंगमा हिल्स को राज्य के राजनीतिक मानचित्र से हटा दिया गया था, और 1951 में मिकिर हिल्स , जो अब कार्बी आंगलोंग है, के साथ बदल दिया गया।
  • रेंगमा नागा पीपुल्स काउंसिल ने अपने इतिहास का वर्णन करते हुए कहा कि वर्ष 1816 से वर्ष1819 में असम के बर्मी आक्रमणों के दौरान रेंगमा ही थे, जिन्होंने असम शरणार्थियों को आश्रय दिया था।
  • याचिका में कहा गया है कि वर्ष 1963 में नागालैंड राज्य गठन के समय रेंगमा हिल्स को असम और नागालैंड के मध्य विभाजित किया गया था और कार्बी, जिन्हें वर्ष1976 तक मिकिर के नाम से जाना जाता था। मिकिर हिल्स के स्वदेशी आदिवासी लोग थे। इस प्रकार वर्ष 1951तक रेंगमा हिल्स और मिकिर हिल्स दो अलग-अलग संस्थाएं थीं।
  • जबकि कार्बीयों का रेंगमा हिल्स में कोई इतिहास नहीं है। जो लोग वर्तमान में रेंगमा हिल्स में रह रहे हैं वे असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय से हैं। वे अलग-अलग बोलियां बोलते हैं और कार्बी आंगलोंग की कार्बी भाषा नहीं जानते हैं।

एनएससीएन (आईएम) का मत

  • असम सरकार, कार्बी-आंगलोंग क्षेत्र के प्रभावी उग्रवादी संगठनों के साथ शांति समझौता करने की स्थिति में है। इसी बीच नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड या एनएससीएन (इसाक-मुइवा) (NSCN-IM) नामक एक नागा संगठन ने कहा है कि, रेंगमा नागाओं को पीड़ित करने वाला कोई भी समझौता उनको स्वीकार्य नहीं होगा।
  • इस सारे प्रकरण के केंद्र में कार्बी आंगलोंग क्षेत्र है, जिसे पहले ‘रेंगमा हिल्स’ (Rengma Hills) के नाम से जाना जाता था। रेंगमा हिल्स को निहित स्वार्थों के चलते बाहरी लोगों के आक्रामक अंतः प्रवाह का शिकार बनाया जाता रहा है।

‘स्वायत्त जिला परिषदें’ क्या होती हैं ?

  • भारतीय संविधान की 6वीं अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा के लिए ‘स्वायत्त विकास परिषदों’ के निर्माण के माध्यम से समुदायों को स्वायत्तता प्रदान करती है।
  • इस तरह स्वायत्त विकास परिषदें भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और अन्य पर कानून बना सकती हैं। वर्तमान में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं।
  • इस याचिका में निर्दिष्ट आदिवासी क्षेत्र असम में उत्तरी कछार हिल्स, कार्बी आंगलोंग और बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र हैं। विदित हो कि कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद की 26 सीटें हैं।
  • 6वीं अनुसूची के अनुसार, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम, 4 राज्यों के जनजातीय क्षेत्र, तकनीकी रूप से अनुसूचित क्षेत्रों से अलग हैं, क्योंकि यह क्षेत्र राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के दायरे में तो आते हैं, परन्तु कुछ विधायी और न्यायिक शक्तियों के प्रयोग के लिए इन क्षेत्रों में ‘जिला परिषदों’ और ‘क्षेत्रीय परिषदों’के गठन का प्रावधान भी किया गया है।
  • इसके तहत, प्रत्येक जिला एक स्वायत्त जिला होता है और राज्यपाल एक अधिसूचना के माध्यम से उक्त जनजातीय क्षेत्रों की सीमाओं को संशोधित / विभाजित कर सकते हैं।

राज्यपाल एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा:

  • किसी भी क्षेत्र को शामिल कर सकते हैं।
  • किसी भी क्षेत्र को बाहर निकाल सकते हैं।
  • एक नया स्वायत्त जिला गठित कर सकते हैं।
  • किसी भी स्वायत्त जिले के क्षेत्र में वृद्धि कर सकते हैं।
  • किसी भी स्वायत्त जिले के क्षेत्र को कम कर सकते हैं।
  • किसी स्वायत्त जिले का नाम परिवर्तित कर सकते हैं।
  • किसी स्वायत्त जिले की सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं।

जिला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों का गठन:

  • प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होगी, जिसमें 30 से अधिक सदस्य नहीं होंगे, और इनमे से अधिकतम 4 सदस्य राज्यपाल नामित करेगा और शेष सदस्यों को वयस्क मताधिकार के आधार पर चुना जाएगा।
  • गठित किये गए प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद परिषद होगी।
  • प्रत्येक जिला परिषद और प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में, क्रमशः जिला परिषद (जिले का नाम) तथा क्षेत्रीय परिषद (क्षेत्र का नाम) नामक निगमित निकाय (body corporate) होंगे।
  • इनमें चिर उत्तराधिकार (perpetual succession) प्रणाली तथा एक सामूहिक मुहर होगी, तथा उक्त नामों से ही ये कार्रवाई करेंगे और इन पर कार्रवाई की जाएगी।

स्रोत: पीआईबी

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