असम में भूकंप की घटना

असम में भूकंप की घटना (Earthquake)

हाल ही में असम राज्य सहित भारत कई पूर्वोत्तर राज्यों में 6.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाले भूकंप की घटना देखी गई है। भूकंप के झटकों को अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से और बिहार तक महसूस किया गया है।

  • ‘कोपिली फॉल्ट ज़ोन’ जो हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट’ के करीब स्थित है,जिसको इस भूकंप का कारण माना जा रहा है। इस तथ्य की जानकारी नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) ने दी है ।
  • विदित हो कि नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी करने के लिए भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत एक नोडल एजेंसी है।

प्रमुख बिन्दु:

  • हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट को मुख्य फ्रंटल थ्रस्ट के रूप में भी जाना जाता है,यह भारतीय और यूरेशियन विवर्तनिक प्लेटों की सीमा वाला एक भूवैज्ञानिक भ्रंश (फॉल्ट) है।
  • ‘कोपिली फॉल्ट ज़ोन’ भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में मणिपुर के पश्चिमी भाग,भूटान, अरुणाचल प्रदेश और असम तक फैला 300 किलोमीटर लंबा और 50 किलोमीटर चौड़ाई वाला क्षेत्र है

भूकंप क्या है ?

  • भूकंप एक प्राकृतिक घटना है।साधारण शब्दों में पृथ्वी की सतहपर होने वाले अचानक कंपन को भूकंप कहते हैं। इस आकस्मिक कंपन का कारण पृथ्वी के अंदर से निकलने वाली ऊर्जा होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
  • भूकंप एक प्रकार की तरंगीय ऊर्जा (Wave Energy) है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं, तथा इन्हें सिस्मोग्राफ से मापा जाता है। इन तरंगो की अत्यधिक गति पृथ्वी पर विनाशकारी स्थिति उत्पन्न कर सकती है।

भूकंप मूल (Focus): पृथ्वी की सतह के नीचे का वह स्थान जहाँ से भूकंपीय तरंगे उत्पन्न होती हैं, को भूकंप मूल (Focus)या हाइपोसेंटर  (Hypocenter)  कहते हैं।

उपकेंद्र (Epicenter): जहाँ भूकंप तरगें सबसे पहले पृथ्वी की सतह पर पहुँचती हैं ,वह स्थान उपकेंद्र (Epicenter) कहलाता है। भूकंप केंद्र सामान्यतः मूल या फोकस के लंबवत स्थित स्थान होता है।

भूकंपीय तरंगें

भूकंपीय तरंगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

प्राथमिक तरंगें- ‘पी’ (Primary Waves- ‘P’) – ये ध्वनि तरंगों की भांति चलती हैं। इनकी गति अत्यधिक होती है  और ये ठोस,द्रव और गैस तीनों माध्यमों में गति कर सकती हैं। सर्वाधिक गति ठोस माध्यम में होती है।

द्वितीयक तरंगे –‘एस’(Secondary Waves- ‘S’) – इनकी गति प्राथमिक तरंगें की तुलना में कम होती है। ये तरंगें पीतरंगों के बाद उत्पन्न होती हैं तथा ये तरल माध्यम में गति नहीं कर पाती हैं।

सतही तरंगें-‘एल’(Surface or Long Waves- ‘L’) – ये तरंगे सर्वाधिक घातक भूकंपीय तरंगे हैंजो सिर्फ सतह पर ही चलती हैं।सर्वाधिक विनाश इसी तरंगों से होता है।

भूकंप के कारण

भू-गर्भिक क्रियायें जो मुख्यतः प्लेट विवर्तनिकी के कारण जनित होती हैं, इनको ही पृथ्वी केअधिकांश भूकंपों का कारण माना जाता हैं। इसके अलावा भी अन्य प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • ज्वालामुखी क्रिया
  • वलन एवं भ्रंशन
  • भूगर्भीय गैसों का फैलाव
  • मानवीय कारक

भारत में भूकंपीय ज़ोन

भूकंपीय इतिहास के आधार पर, भारतीय मानक ब्यूरो(Bureau of Indian Standards- BIS) द्वारा देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है-

ज़ोन-V: भूकंपीय दृष्टि से यह ज़ोन सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ सबसे अधिक तीव्र झटके देखे गए हैं।इस क्षेत्र में पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात के कच्छ के कुछ हिस्से, उत्तर बिहार और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्से शामिल हैं।

ज़ोन- IV: इस जों में जम्मू और कश्मीर, लद्दाख ,हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से , गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों, और पश्चिमी तट के पास महाराष्ट्र के छोटे हिस्से आते हैं ।

ज़ोन-III:केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल के शेष भाग, पंजाब के कुछ हिस्से, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड के कुछ हिस्से, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक शामिल हैं।

ज़ोन-II: देश के शेष हिस्से शामिल हैं। विदित हो कि भारतीय मानक ब्यूरो ने दो जोनों (प्रथम व द्वितीय) को एकसाथ मिलाकर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया है।

स्रोत – पीआईबी

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