असम-मिजोरम सीमा विवाद
हाल ही में, असम और मिजोरम की सीमाओं पर दोनों राज्यों की पुलिस एवं स्थानीय नागरिकों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें असम पुलिस के कुछ जवान मारे गये और दोनों ओर के बहुत से व्यक्ति घायल हुए थे।
ऐसे में दोनों राज्यों की सरकारें एक दूसरे पर हिंसा भड़काने का आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं एवं केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रही हैं।
सीमा विवाद के कारणः
मिजोरम के तीन जिले- आइजोल, कोलासिब और ममित- असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिलों के साथ लगभग 164.6 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। दोनों राज्यों में सीमा विवाद 100 साल पहले ब्रिटिश राज के समय से है। तब मिजोरम को असम के लुशाई हिल्स के रूप में जाना जाता था।
औपनिवेशिक विरासतः मिजोरम का तर्क है कि सीमा का निर्धारण वर्ष 1875 की अधिसूचना (वर्ष 1873 के बंगाल ईस्टर्नफ्रंटियररेगुलेशन के तहत) के आधार पर किया जाना चाहिए, जबकि असम वर्ष 1933 के सीमांकन के तहत तैयार किए गए संवैधानिक मानचित्र से सहमत है।
दोषपूर्ण सीमा निर्धारणः असम को मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में विभाजित किया गया था। किंतु सभी पक्षों द्वारा कभी भी उचित सीमांकन के माध्यम से या निर्विवाद रूप से आदेशों को स्वीकार नहीं किया गया था, जिससे राज्यों के मध्य विवाद बना रहा ।
विशेषज्ञों के अनुसार इन राज्यों को जमीनी वास्तविकताओं पर ध्यान दिए बिना जल्दबाजी में असम से पृथक कर दिया गया था, तब से ही इन राज्यों के पास इस प्रकार के विवादों के निराकरण के लिए कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है।
संभावित उपायः
- सीमाओं के उचित सीमांकन के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देश के तहत सीमा आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
- नॉर्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस(NEDA) के तहत राजनीतिक समाधान निकालने के प्रयास किए जाने चाहिए।
- विश्वास निर्माण उपायों के लिए अंतर-राज्य परिषद के उपयोग के साथ केंद्र सरकार को मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए ।
- लोगो के मध्य पारस्परिक जुड़ाव के माध्यम से क्षेत्र का समग्र विकास सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस