चुनाव आयोग ने ‘असम’ के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शरू की
हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (EC) ने असम में सभी 126 विधानसभा और 14 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू कर दी है।
विदित हो कि परिसीमन देश या राज्य में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय करने की प्रक्रिया है।
असम में परिसीमन –
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (Representation of the People Act, 1950) की धारा 8A के अनुसार असम की विधानसभा और संसदीय सीटों के पुनर्निर्धारण का कदम केंद्रीय कानून मंत्रालय के एक अनुरोध के बाद शुरू किया गया है।
- चुनाव आयोग ने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया से निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, हालांकि सीटों की संख्या अपरिवर्तित रहेगी, यह सीटों के समायोजन के लिए 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करेगा।
- बता दें कि 2002 में 84वें संविधान संशोधन ने वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना तक लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर रोक लगा दी थी।
- देश भर में वर्तमान परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर खींची गई थीं, लेकिन लोकसभा सीटों की संख्या और राज्य विधानसभा की सीटें 1971 की जनगणना के आधार पर यथावत रखी गयी है।
मुख्य बिंदु–
- मार्च 2020 में, केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के लिए एक परिसीमन आयोग को अधिसूचित किया था।
- लेकिन मार्च 2021 में, जब केंद्र ने परिसीमन आयोग की अवधि एक साल के लिए बढ़ा दी, तो पूर्वोत्तर राज्यों को इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया गया और पैनल को केवल जम्मू और कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए कहा गया था।
- जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत अनिवार्य है, जनगणना के आंकड़े (2001) का उपयोग राज्य में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन के उद्देश्य से किया जाएगा।
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अनुसार प्रदान किया जाएगा।
- परिसीमन अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत, असम में निर्वाचन क्षेत्रों का अंतिम परिसीमन 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 1976 में तत्कालीन परिसीमन आयोग द्वारा प्रभावी किया गया था।
- इसलिए इसे वर्ष 2001 के अनुसार समायोजित किया जाना है लेकिन सीटों की संख्या परिवर्तन नहीं होगा क्योंकि 84वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत इसे वर्ष 2026 की बाद की पहली जनगणना तक रोक लगा दी गयी है।
स्रोत – द हिन्दू