भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट
हाल ही में प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने ‘भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट’ जारी की है
यह रिपोर्ट इंस्टीट्यूट फॉर कम्पेटिटिवेनेस ने तैयार की है। यह रिपोर्ट भारत में असमानता की प्रवृत्ति व गहराई के समग्र विश्लेषण को प्रदर्शित करती है। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं, आय वितरण और श्रम बाज़ार की गतिशीलता में असमानताओं पर जानकारी एकत्र करती है।
असमानता से तात्पर्य संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण से है। यह गरीबी तथा अभाव को बढ़ावा देती है।
यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE+) से प्राप्त किए गए आंकड़ों पर आधारित है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- 25,000 रुपये का मासिक वेतन पाने वाला भारतीय, देश के शीर्ष 10% कमाने वालों में शामिल है।
- भारत में ट्रिकल डाउन सिद्धांत विफल रहा है। देश के शीर्ष 1% अर्जक की आय वर्ष 2017-18 से वर्ष 2019-2020 के दौरान 15% बढ़ी है, जबकि निचले 10% की आय 1% घट गई है।
- इसके अलावा, शीर्ष 1% अर्जक लोग, देश की कुल आय का 6-7% कमाते हैं। वहीं शीर्ष 10% अर्जक लोग,कुल एक तिहाई आय में हिस्सेदारी रखते हैं।
- रोजगार (2019-20) की स्थिति इस प्रकार रही है –
- स्व-नियोजित कामगारः78%,
- वेतनभोगी कर्मचारी:5% और
- अनौपचारिक कामगारः71%.
- स्वास्थ्य, शिक्षा और पारिवारिक स्थितियों में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया है। स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या, स्कूलों में जल और स्वच्छता सुविधाएं, सुरक्षित पेयजल तथा घरों में विद्युत आपूर्ति में सुधार हुआ है।
- पोषाहार की कमी अभी भी एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है।
प्रमुख सुझाव:
- स्थिति जानने और सम्पूर्ण कल्याण को कैसे बढ़ावा दिया जाए, इसके लिए नियमित अभ्यास की जरूरत है। इसमें सीखने की बुनियादी क्षमता और संख्यात्मक सूचकांक तथा ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- गरीबों की स्थिति में सुधार लाने के लिए दीर्घावधि विकास के साथ शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित की जाए और अधिक रोजगार पैदा किए जाएं।
- सामाजिक सेवाओं और सामाजिक क्षेत्र के लिए व्यय का अधिक प्रतिशत आवंटित किया जाए। इससे सर्वाधिक सुभेद्य आबादी को आकस्मिक खतरों से बचाया जा सकेगा और उन्हें गरीबी में जाने से रोका जा सकेगा।
- अत्यधिक मजबूत स्तरों को स्थापित किया जाना चाहिए। इससे एक वर्ग से दूसरे वर्ग में अंतर स्पष्ट हो सकेगा। इससे एक वर्ग से बाहर जाने वालों और उसमें प्रवेश करने वालों की निगरानी सही से हो सकेगी।
- न्यूनतम आय बढ़ाने तथा सार्वभौमिक बुनियादी आय की शुरुआत करने से आय अंतराल को कम किया जा सकता है।
- मनरेगा जैसी योजना शहरों में भी शुरू की जानी चाहिए। मनरेगा मांग आधारित है, और रोजगार की गारंटी प्रदान करता है।
स्रोत –द हिन्दू