असंभव त्रियी

असंभव त्रियी

हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा बढ़ती कीमतों का मुकाबला करने हेतु ब्याज दरों में वृद्धि किए जाने के बाद से ‘त्रिधापाश’/‘ट्राइलेम’ (trilemma) एक चर्चा का विषय बन गया है।

  • असंभव त्रियी (Impossible Trinity), या ‘ट्राइलेम’ का तात्पर्य इस विचार से है, कि कोई अर्थव्यवस्था एक ही समय में, ‘स्वतंत्र मौद्रिक नीति का पालन नहीं कर सकती है, न ही निश्चित विनिमय दर बनाए रख सकती है, और न ही अपनी सीमाओं के पार पूंजी के मुक्त प्रवाह की अनुमति दे सकती है’।
  • The Impossible Trinity
  • अर्थशास्त्रियों के अनुसार कोई भी अर्थव्यवस्था लंबे समय में एक साथ ऊपर बताए गए तीन नीति विकल्पों में से केवल दो को ही अपनाना चुन सकती है।
  • यह विचार कनाडा के अर्थशास्त्री रॉबर्ट मुंडेल और ब्रिटिश अर्थशास्त्री मार्कस फ्लेमिंग द्वारा 1960 के दशक की शुरुआत में स्वतंत्र रूप से प्रस्तावित किया गया था।
  • चूंकि, पूंजी काफी हद तक आसानी से सीमापार जाने के लिए स्वतंत्र होती है, अतः नीति निर्माताओं के सामने एक निश्चित विनिमय दर बनाए रखने और एक स्वतंत्र मौद्रिक नीति का पालन करने के बीच चुनाव करने का विकल्प होता है।
  • उदाहरण के लिए, यदि किसी देश के नीति निर्माता चाहते हैं कि उनकी मुद्रा, विदेशी मुद्राओं के मुकाबले बढ़े, या मजबूत हो, तो वे सख्त घरेलू मौद्रिक नीति का रुख अपनाए बिना, इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं तथा लंबे समय तक मुद्रा की बाह्य ताकत को को बनाए नहीं रख सकते हैं। और, सख्त घरेलू मौद्रिक नीति अपनाने से घरेलू मांग भी कमजोर हो सकती है।
  • दूसरी ओर, यदि किसी देश के नीति निर्माता ‘स्वतंत्र मौद्रिक नीति’ अपनाने का विकल्प चुनते हैं, तो वे अपनी मुद्रा के विदेशी मुद्रा मूल्य को वांछित स्तर पर बनाए रखने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

भारत के संदर्भ में:

भारतीय रिजर्व बैंक को ‘रुपये की कीमत’ को बनाए रखने और अपनी ‘मौद्रिक नीति की स्वतंत्रता’ को बनाए रखने के बीच चयन करने की दुविधा का भी सामना करना पड़ सकता है। जैसा कि, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाई जाने से रुपये पर दबाव बढ़ रहा है, और ‘रुपये की कीमत’ इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 10% कम हो गयी है।

स्रोत – द हिन्दू

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