अल-नीनो का भारत में मुद्रास्फीति और कृषि उत्पादन पर अल खतरा
अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने इस साल ‘अल-नीनो’ वर्ष रहने का पूर्वानुमान लगाया है।
अल-नीनो – दक्षिणी दोलन (ENSO)
- वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को बदलने की क्षमता के कारण, ENSO को पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण जलवायु परिघटनाओं में से एक माना जाता है।
- दक्षिणी दोलन पूर्वी और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के बीच वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन के लिए प्रयुक्त शब्दावली है।
- यह परिवर्तन महासागर में अल-नीनो और ला-नीना दोनों, परिघटनाओं से जुड़ा हुआ है। ENSO एकल जलवायु परिघटना है।
इसके निम्नलिखित तीन चरण हैं:
- अल-नीनो : इस परिघटना में मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में महासागरीय सतह गर्म हो जाती है या औसत समुद्री सतह तापमान (SST) से अधिक का तापमान हो जाता है।
- ला-नीना ; इस परिघटना में मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में महासागरीय सतह ठंडी हो जाती है या तापमान, औसत SST से कम हो जाता है।
- तटस्थ: न तो अल-नीनो और न ही ला नीना परिघटना घटित होती है। ऐसी स्थिति में अक्सर उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर SST औसत के निकट होता है।
खाद्य मुद्रास्फीति पर अल-नीनो का प्रभाव: अल-नीनो अवधि के दौरान भारत में मानसून अक्सर कमजोर होता है। इसके परिणामस्वरूप, फसल की पैदावार औसत से कम हो जाती और खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है । यह अनुमान लगाया गया है कि पिछले 130 वर्षों में भारत में पड़ने वाले सभी सूखों के 60 प्रतिशत सूखे अल नीनो परिघटना से संबद्ध थे।
स्रोत – इकोनोमिक्स टाइम्स