अल नीनो के कारण विश्व में चरम मौसम की संभावना: डब्ल्यूएमओ
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने कहा है कि, विश्व को अल-नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए।
WMO के अनुसार तीन सालों से सक्रिय ला-नीना का प्रभाव अब समाप्त हो गया है तथा उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र वर्तमान में ENSO-तटस्थ स्थिति में है । इसका अर्थ है कि यह स्थिति न तो अल-नीनो और न ही ला-नीना की मौजूदगी का स्पष्ट संकेत देती है।
अल-नीनो प्राकृतिक रूप से घटित होने वाला एक जलवायु पैटर्न है। यह मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के गर्म होने से संबंधित है।
इसके विपरीत, ला-नीना के दौरान यह क्षेत्र ठंडा हो जाता है । साथ ही, ला नीना और अल-नीनो दोनों ही अल नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation: ENSO) के क्रमशः ठंडे (ला-नीना) और गर्म (अल-नीनो) चरण हैं।
वर्तमान में अल-नीनो के घटित होने की संभावना अधिक है। साथ ही WMO ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि उत्तरी गोलार्ध के ऊपर स्प्रिंग प्रेडिकेबिलिटी बैरियर (SPB) अभी तक असक्रिय नहीं हुआ है। ।
SPB मौसम और जलवायु भविष्यवाणी से संबंधित एक घटना है। इसमें वसंत की शुरुआत के दौरान पूर्वानुमान की सटीकता कम हो जाती है।
भारत पर अल नीनो का प्रभाव
- कृषि पर दबाव औसत से कम वर्षा कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है।
- खाद्य मुद्रास्फीति: कम उत्पादन से खाद्यान्नों की मांग में वृद्धि होगी।
- बिजली की खपत में वृद्धि: तापमान सामान्य से अधिक होने के कारण बिजली की खपत में बढ़ोतरी होगी।
- बिजली की खपत में वृद्धि: तापमान सामान्य से अधिक होने के कारण बिजली की खपत में बढ़ोतरी होगी।
- बिजली उत्पादन: कम वर्षा जल – विद्युत संयंत्रों की उत्पादन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी ।
नीतिगत उपायों में शामिल हैं:
स्रोत – हिन्दुस्तान टाइम्स