हाल ही में ‘अर्थ गंगा’ नदी के सतत विकास के लिए सरकार के एक नये मॉडल के रूप में घोषित हो गया है ।
‘अर्थ गंगा’ का तात्पर्य गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान देने के साथ एक सतत विकास मॉडल है।
पीएम मोदी ने पहली बार 2019 में कानपुर में पहली राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक के दौरान इस अवधारणा को पेश किया, जहां उन्होंने नमामि गंगे से अर्थ गंगा के मॉडल में बदलाव का आग्रह किया।
विशेषज्ञों के अनुसार अर्थ गंगा इस तथ्य की स्वीकृति है कि केवल प्रदूषण दूर करने वाले उपायों से ही नदी का कायाकल्प नहीं किया जा सकता।
यह नदी से संबंधित आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से गंगा और उसके आसपास के क्षेत्रों के सतत विकास पर केंद्रित है।
इस पहल से केवल “गंगा बेसिन से ही सकल घरेलू उत्पाद में कम से कम 3% योगदान” का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही, भारत के सतत विकास लक्ष्य की प्रतिबद्धता को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।
अर्थ गंगा के छह घटक-
- शून्य बजट प्राकृतिक खेतीः इसके तहत नदी के दोनों ओर किलोमीटर के दायरे में रसायन मुक्त खेती और गोवर्धन योजना के माध्यम से खाद के रूप में गोबर के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- गाद और अपशिष्ट जल का फिर से उपयोग और मुद्रीकरणः उपचारित जल के सिंचाई में तथा उद्योगों में उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को राजस्व का अतिरिक्त स्रोत प्राप्त होगा।
- आजीविका के अवसर पैदा करना।
- नदी से जुड़े हितधारकों के बीच संपर्क बढ़ाकर सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देना।
- गंगा की सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन को बढ़ावा देना।
- स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाकर संस्थागत निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे बेहतर जल प्रशासन सुनिश्चित होगा।
स्रोत –द हिन्दू