अंतरराज्यीय परिषद (ISC)
हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने प्रधान मंत्री को पत्र लिखकर, अंतरराज्यीय परिषद (ISC) की बैठक वर्ष में तीन बार आयोजित करने का आग्रह किया है ।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने यह भी सुझाव दिया है कि राष्ट्रीय महत्व के विधेयकों को संसद में प्रस्तुत करने से पहले परिषद के समक्ष रखा जाना चाहिए।
इससे “सहकारी संघवाद” की भावना को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
अंतरराज्यीय परिषद (ISC) के बारे में–
- इसे संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत स्थापित किया गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि, राष्ट्रपति आवश्यकता महसूस होने पर ऐसी संस्था का गठन कर सकता है।
- वर्ष 1988 में, सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि, इस परिषद को एक स्थायी निकाय के रूप में होना चाहिए। इसके बाद वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से यह अस्तित्व में आई थी।
परिषद में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रधान मंत्री – अध्यक्ष;
- सभी राज्यों और विधान सभा वाले संघ शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री – सदस्य;
- जिन संघ शासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है, वहां के प्रशासक – सदस्य;
- केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कैबिनेट रैंक के छह मंत्री, जिन्हें प्रधान मंत्री द्वारा मनोनीत किया जाता है- सदस्य तथा
- स्थायी आमंत्रित सदस्यों के रूप में 10 केंद्रीय मंत्री।
अंतरराज्यीय परिषद के कार्य–
- राज्यों के बीच विवादों की जांच करना और उन्हें सलाह देना।
- उन विषयों की जांच और उन पर चर्चा करना, जिनमें दो राज्यों अथवा राज्यों एवं संघ के समान/साझे हित शामिल हैं।
- नीति और कार्रवाई के बीच बेहतर समन्वय के लिए सिफारिशें करना।
- अंतरराज्यीय परिषद की पिछले छह वर्षों में केवल एक बार ही बैठक हुई है। वर्ष 1990 में इसके गठन के बाद से केवल 11 बार ही इसकी बैठके आयोजित हुई हैं।
स्रोत –द हिन्दू