अंटार्कटिक संधि की 60 वीं वर्षगांठ
हाल ही में 23 जून को अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) की 60 वीं वर्षगांठ मनाई गयी। विदित हो कि अंटार्कटिक संधि को 23 जून 1961लागू किया गया था ।
इस संधि का महत्व:
शीत युद्ध के समय, अंटार्कटिक में अपना हित देखने वाले बारह देशों द्वारा हस्ताक्षरित की गई यह संधि, किसी संपूर्ण महाद्वीप पर लागू होने वाली एकमात्र एकल संधि है। यह किसी अस्थाई आबादी वाले महाद्वीप क्षेत्र के लिए नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की नींव भी है।
वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता
- इस संधि पर एक अत्यंत जटिल समय और जटिल परिस्थितियों पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन क्या अब इस संधि की अनिवार्यता है या नहीं ऐसा प्रश्न अकसर उठता रहा है ?
- हालांकि, 1950 के दशक की तुलना में वर्ष 2020 के दशक में परिस्थितियां मौलिक रूप से बदली हुई हैं, फिर भी अंटार्कटिक संधि आज भी कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक जवाब देने में सक्षम है।
- अंटार्कटिका, काफी सीमा तक प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन के कारण काफी सुगम्य एवं सुलभ है।इस महाद्वीप से मूल 12 देशों के अलावा अब इसमें कई अन्य देशों के वास्तविक हित भी जुड़ चुके हैं।कुछ वैश्विक संसाधन, विशेषकर तेल, काफी दुर्लभ होते जा रहे हैं।
- अंटार्कटिका क्षेत्र के विषय में चीन की मंशा को लेकर भी अनिश्चितता है। चीन इस संधि में साल 1983 में शामिल हुआ था एवं वर्ष 1985 में एक सलाहकार सदस्य बन गया।
- ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि , भविष्य में किसी समय अंटार्कटिक में खनन की संभावनाओं पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।इसी कारण ‘अंटार्कटिक में खनन पर प्रतिबंधों’ पर एक बार फिर से विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है।
अंटार्कटिक संधि के बारे में:
- 1 दिसंबर 1959 को वाशिंगटन में ‘अंटार्कटिक महाद्वीप को केवल वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु संरक्षित करने एवं असैन्यीकृत क्षेत्र बनाए रखने हेतु 12 देशों द्वारा अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- इन 12 मूल हस्ताक्षरकर्ता देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, चिली, फ्रांस, जापान, न्यूजीलैंड, बेल्जियम,नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेनशामिल हैं।
- यह संधि वर्ष 1961 में लागू हुई थी तब से लेकर अब तक इसमें 54 देश सम्मिलित हो चुके हैं। भारत, वर्ष 1983 में इस संधि का सदस्य बना था। इसका मुख्यालय ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना अवस्थित है ।
- इस संधि में अंटार्कटिका को 60 °S अक्षांश के दक्षिण में स्थित एक बर्फ से आच्छादित भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।
संधि के प्रमुख प्रावधान:
- ‘अनुच्छेद –I’ के तहत ,अंटार्कटिका का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा ।
- ‘अनुच्छेद-II’ के तहत अंटार्कटिका में वैज्ञानिक शोध की स्वतंत्रता और इस दिशा में सहयोग जारी रहेगा ।
- ‘अनुच्छेद – III’के तहत अंटार्कटिका से वैज्ञानिक प्रेक्षणों और परिणामों का आदान-प्रदान किया जाएगा और इन्हें स्वतंत्र रूप से मुहैया कराया जाएगा ।
- ‘अनुच्छेद IV’के तहत , क्षेत्रीय संप्रभुता को निष्प्रभावी रहेगी अर्थात् किसी देश द्वारा इस पर कोई नया दावा करने या मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जा सकेगा ।
- इस संधि के माध्यम से इस महाद्वीप पर किसी भी देश द्वारा की जाने वाले दावेदारी संबंधी सभी विवादों पर रोक लगा दी गई।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली:
वर्षों से अंटार्कटिक महाद्वीप को लेकर विवाद उत्पन्न होते रहे हैं, लेकिन विभिन्न समझौतों और संधि के फ्रेमवर्क में विस्तार के माध्यम से लगभग सभी विवादों को हल किया गया है। इस पूरे ढाँचे को अब अंटार्कटिक संधि प्रणाली (Antarctic Treaty System) के रूप में जाना जाता है।
अंटार्कटिक संधि प्रणाली के मुख्य समझौते
यह मुख्य तौर पर 4 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समझौतों से निर्मित है –
- 1959 की अंटार्कटिक संधि
- अंटार्कटिक सील मछलियों के संरक्षण हेतु 1972 अभिसमय
- अंटार्कटिक समुद्री जीवन संसाधनों के संरक्षण पर 1980 का अभिसमय
- अंटार्कटिक संधि के लिये पर्यावरण संरक्षण पर 1991 का प्रोटोकॉल
स्रोत – द हिन्दू