अंटार्कटिक आइस कोर में औद्योगिक फ्लाई ऐश का पहला साक्ष्य प्राप्त हुआ
- हाल ही में शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिक आइस कोर में पहली बार फ्लाई ऐश के एक घटक गोलाभीय कार्बन मय कणों (Spheroidal carbonaceous particles: SCPs) की पहचान की है। वैज्ञानिक इन कणों की तिथि 1936 बता रहे हैं ।
- SCPs का एकमात्र स्रोत जीवाश्म ईंधन दहन है। इसके अलावा, इनका कोई अन्य मानव-जनित या प्राकृतिक स्रोत नहीं है । इस प्रकार, ये औद्योगीकरण का एक स्पष्ट पर्यावरणीय संकेतक हैं।
- फ्लाई ऐश महीन पाउडर है। यह तापीय विद्युत स्टेशनों (TPS) में कोयले के दहन से प्राप्त एक उप-उत्पाद है।
- भारतीय कोयले में ऐश (राख) की मात्रा 30-45% तक होती है, जबकि आयातित कोयले में इसकी मात्रा 10-15% ही होती है । इसलिए, भारतीय कोयले को निम्न श्रेणी का माना जाता है।
- फ्लाई ऐश के निपटान के लिए न केवल एक बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है, बल्कि यह हवा और जल को भी प्रदूषित करता है।
- यह पोर्टलैंड सीमेंट जैसा दिखाई देता है, किन्तु इसकी रासायनिक संरचना अलग होती है। फ्लाई ऐश कार्बनिक प्रदूषकों, भारी धातुओं आदि की उपस्थिति के कारण विषाक्त होती है ।
संरचना: इसमें पर्याप्त मात्रा में सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें आर्सेनिक, बोरॉन, क्रोमियम, सीसा आदि की बहुत कम मात्रा पाई जाती है।
फ्लाई ऐश का उपयोग:
- कृषि- यह जल धारण क्षमता और मृदा के वातन / वायु संचरण में सुधार करता है ।
- निर्माण उद्योग – इसका सीमेंट ईंट आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है ।
सरकार द्वारा किए गए उपाय
- फ्लाई ऐश प्रबंधन के लिए मोबाइल ऐप ‘ऐश ट्रैक’ लॉन्च किया गया है।
- सभी सरकारी योजनाओं में फ्लाई ऐश आधारित उत्पादों का अनिवार्य उपयोग किया जाएगा। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना आदि ।
- फ्लाई ऐश उपयोग नीति, 2016 को अपनाने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य बन गया है।
स्रोत – डाउन टू अर्थ