अंटार्कटिका के आस-पास संरक्षण प्रयासों में विफलता
हाल ही में दक्षिणी महासागर के संसाधनों में बढ़ती व्यावसायिक रुचि अंटार्कटिका के आस-पास संरक्षण प्रयासों को विफल कर रही है।
- अंटार्कटिका के चारों ओर फैला दक्षिणी महासागर वैश्विक महासागरीय क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा है। साथ ही, यहां लगभग 10,000 विशेष ध्रुवीय प्रजातियां पाई जाती हैं ।
- इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों (जैसे व्यावसायिक मत्स्यन आदि) के कारण समुद्री पर्यावासों में परिवर्तन हो रहा है।
- इसके परिणामस्वरूप, समुद्री हिम और हिमावरण के नीचे समुद्री नितल पर आश्रय लेने वाले जीवों के पर्यावासों को नुकसान पहुँच रहा है।
- बड़ी मात्रा में क्रिल पकड़े जाने के कारण उन जीवों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है, जो इनका शिकार करते हैं जैसे- व्हेल, सील, पेंगुइन आदि ।
अंटार्कटिका का महत्त्व
- अंटार्कटिका और इसके आस-पास का दक्षिणी महासागर पृथ्वी की महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रणालियों के प्रमुख चालक हैं।
- अंटार्कटिका का पर्यावरण जलवायु परिवर्तन के लिए एक मूल्यवान मानक प्रदान करता है।
- अंटार्कटिका की हिम सूर्य की कुछ किरणों को पृथ्वी से विक्षेपित (deflect) कर देती है। इससे तापमान रहने योग्य बना रहता है।
अंटार्कटिका की सुरक्षा के लिए किए गए वैश्विक प्रयास
- वर्ष 1959 में अंटार्कटिका संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके उद्देश्य अंटार्कटिका को विसैन्यीकृत करना, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देना आदि थे। भारत इस संधि का सदस्य है ।
- अंटार्कटिक सील्स के संरक्षण के लिए अभिसमय, 1972 ।
- अंटार्कटिक समुद्री सजीव संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय, 1982 (भारत द्वारा अनुसमर्थित) ।
- अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के लिए पर्यावरण-संरक्षण पर प्रोटोकॉल, 1991। भारत इसका एक हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र है ।
- भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम 1981 में शुरू हुआ था। इसके अंतर्गत अंटार्कटिका में अनुसंधान के लिए दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012) नामक तीन बेस स्टेशन स्थापित किए गए थे। इनमें से मैत्री और भारती अब भी पूरी तरह से कार्यरत हैं ।
स्रोत – डाउन टू अर्थ